मोकामा विधानसभा क्षेत्र में 8 प्रत्याशी मैदान में हैं। राजद से निवर्तमान विधायक अनंत सिंह, जदयू से राजीव लोचन नारायण सिंह और लोजपा से सुरेश सिंह निषाद मैदान में हैं। भूमिहार बहुल इस क्षेत्र में इसबार भी इसी जाति के मतदाता निर्णायक होंगे। पिछले चुनाव में जाप के टिकट पर चुनाव लड़े ललन सिंह इसबार जदयू के टिकट के दावेदार थे। अंतिम समय में जदयू ने राजीव लोचन नारायण सिंह को उम्मीदवार बना दिया। ऐसे में ललन सिंह के समर्थक नाराज हैं। टाल के किसान तो नाराज हैं ही। कुछ दिन पहले यहां के किसान धरने पर बैठ गए थे। टाल में पानी लगा है और बुआई का समय बीता जा रहा है। ऐसे में राजद और जदयू दोनों की कोशिश टाल के किसानों को मनाने और ललन के समर्थकों को अपने पाले में करने की चल रही है। क्षेत्र में कमोबेश सड़कें हर जगह बन गई हैं। लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति लचर है। मोकामा के कन्हैया सिंह ने कहा-इलाके में ढंग का अस्पताल नहीं है। मरीज के गंभीर हाेने पर बाढ़ या पटना जाना पड़ता है। भदौर के सनोज सिंह कहते हैं-गांव में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है, जिसके डॉक्टर 15 दिन में एकबार आते हैं। मोकामा टाल 1.06 लाख हेक्टेयर में फैला है। यहां के किसान दावा करते हैं कि सरकार चाह ले तो हम पूरे देश को दाल खिला सकते हैं। लेकिन, इन किसानों के घर की बेटियां दो साल से ब्याही नहीं गई हैं। मरांची के नृत्य गोपाल सिंह कहते हैं- दो साल से बुआई के समय पानी लग जाता है। अक्टूबर और नवंबर ही बुआई का समय है और जाकर देखिए टाल में पानी ही पानी है। ऐसे में हमारी आमदनी ठप है। कुछ अपवाद को छोड़ दें तो इलाके में दो साल से बेटियों की शादी नहीं हुई है। ट्रांसपाेर्टर बबलू और सुरेंद्र सिंह कहते हैं-बालू खनन बंद है। मोकामा पुल की स्थिति जर्जर है। ऐसे में हमसबों का यह धंधा भी चौपट हो गया है। लेकिन, इन कमियों को न तो लोग प्रमुखता दे रहे हैं और न ही यहां के प्रत्याशी। धीरे-धीरे बंद हो गए सारे उद्योग: 80 के दशक तक मोकामा उद्योग-धंधे के लिए जाना जाता था। पुराने लोग कहते हैं-यह बिहार का मिनी कोलकाता कहलाता था। धीरे-धीरे यहां बाहुबलियों के बीच अदावत शुरू हुई और सब कुछ बंद होता चला गया। मोकामा में आजादी के समय स्थापित भारत वैगन, बाटा फैक्ट्री, सूत मिल बंद हो गई। शराबबंदी के बाद मैकडॉवेल की फैक्ट्री भी बंद कर दी गई। 30 साल से बाहुबली ही कर रहे प्रतिनिधित्व बीते तीन दशक यानी 30 साल से मोकामा का प्रतिनिधित्व बाहुबली ही करते आ रहे हैं। 1990 में पहली बार छोटे सरकार कहे जाने वाले अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह जनता दल के टिकट पर विधायक बने थे। 1995 में भी दिलीप सिंह ने ही यहां का प्रतिनिधित्व किया। साल 2000 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर बाहुबली सूरजभान सिंह यहां से चुनकर विधानसभा पहुंचे। 2005 में अनंत सिंह पहली बार जदयू के टिकट पर जीते। तब से वे लगातार मोकामा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। हालांकि साल 2015 में वे निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत हासिल की। रावणराज बनाम रामराज की बहस पटना जिले का मोकामा विधानसभा क्षेत्र मुंगेर लोकसभा क्षेत्र में आता है। जदयू सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को मलाल है कि उन्हें सबसे कम वोट मोकामा से मिला। चुनावी सभाओं में वे अपनी पीड़ा दोहराते भी हैं। कहते हैं- मैं लोकसभा चुनाव में हर विधानसभा क्षेत्र से जीत गया। बस मोकामा से ही कम वोट मिले। तभी प्रण लिया कि इसबार मोकामा को रावणराज से मुक्ति दिलाना है और रामराज स्थापित करना है। यह मुद्दा चर्चित हो गया है। अब देखना यह होगा कि तीर निशाने पर लगता है या नहीं। जिसके पक्ष में भूमिहार वोटर अधिक, जीत की संभावना उतनी ज्यादा यहां भूमिहार वोटर ही निर्णायक होता है। इसबार भूमिहार वोट बंटेगा। जिस दल के पक्ष में जितने अधिक भूमिहार वोट जाएंगे उसकी जीत की संभावना उतनी अधिक होगी। यहां करीब 70 हजार भूमिहार, 40 हजार कुर्मी, 30 हजार यादव, 16 हजार पासवान, 10 हजार मुस्लिम वाेटर हैं। शेष में अन्य जातियों के वोटर हैं। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today 80 के दशक तक मोकामा उद्योग-धंधे के लिए जाना जाता था। पुराने लोग कहते हैं-यह बिहार का मिनी कोलकाता कहलाता था। - VTM Breaking News

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Wednesday, October 21, 2020

मोकामा विधानसभा क्षेत्र में 8 प्रत्याशी मैदान में हैं। राजद से निवर्तमान विधायक अनंत सिंह, जदयू से राजीव लोचन नारायण सिंह और लोजपा से सुरेश सिंह निषाद मैदान में हैं। भूमिहार बहुल इस क्षेत्र में इसबार भी इसी जाति के मतदाता निर्णायक होंगे। पिछले चुनाव में जाप के टिकट पर चुनाव लड़े ललन सिंह इसबार जदयू के टिकट के दावेदार थे। अंतिम समय में जदयू ने राजीव लोचन नारायण सिंह को उम्मीदवार बना दिया। ऐसे में ललन सिंह के समर्थक नाराज हैं। टाल के किसान तो नाराज हैं ही। कुछ दिन पहले यहां के किसान धरने पर बैठ गए थे। टाल में पानी लगा है और बुआई का समय बीता जा रहा है। ऐसे में राजद और जदयू दोनों की कोशिश टाल के किसानों को मनाने और ललन के समर्थकों को अपने पाले में करने की चल रही है। क्षेत्र में कमोबेश सड़कें हर जगह बन गई हैं। लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति लचर है। मोकामा के कन्हैया सिंह ने कहा-इलाके में ढंग का अस्पताल नहीं है। मरीज के गंभीर हाेने पर बाढ़ या पटना जाना पड़ता है। भदौर के सनोज सिंह कहते हैं-गांव में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है, जिसके डॉक्टर 15 दिन में एकबार आते हैं। मोकामा टाल 1.06 लाख हेक्टेयर में फैला है। यहां के किसान दावा करते हैं कि सरकार चाह ले तो हम पूरे देश को दाल खिला सकते हैं। लेकिन, इन किसानों के घर की बेटियां दो साल से ब्याही नहीं गई हैं। मरांची के नृत्य गोपाल सिंह कहते हैं- दो साल से बुआई के समय पानी लग जाता है। अक्टूबर और नवंबर ही बुआई का समय है और जाकर देखिए टाल में पानी ही पानी है। ऐसे में हमारी आमदनी ठप है। कुछ अपवाद को छोड़ दें तो इलाके में दो साल से बेटियों की शादी नहीं हुई है। ट्रांसपाेर्टर बबलू और सुरेंद्र सिंह कहते हैं-बालू खनन बंद है। मोकामा पुल की स्थिति जर्जर है। ऐसे में हमसबों का यह धंधा भी चौपट हो गया है। लेकिन, इन कमियों को न तो लोग प्रमुखता दे रहे हैं और न ही यहां के प्रत्याशी। धीरे-धीरे बंद हो गए सारे उद्योग: 80 के दशक तक मोकामा उद्योग-धंधे के लिए जाना जाता था। पुराने लोग कहते हैं-यह बिहार का मिनी कोलकाता कहलाता था। धीरे-धीरे यहां बाहुबलियों के बीच अदावत शुरू हुई और सब कुछ बंद होता चला गया। मोकामा में आजादी के समय स्थापित भारत वैगन, बाटा फैक्ट्री, सूत मिल बंद हो गई। शराबबंदी के बाद मैकडॉवेल की फैक्ट्री भी बंद कर दी गई। 30 साल से बाहुबली ही कर रहे प्रतिनिधित्व बीते तीन दशक यानी 30 साल से मोकामा का प्रतिनिधित्व बाहुबली ही करते आ रहे हैं। 1990 में पहली बार छोटे सरकार कहे जाने वाले अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह जनता दल के टिकट पर विधायक बने थे। 1995 में भी दिलीप सिंह ने ही यहां का प्रतिनिधित्व किया। साल 2000 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर बाहुबली सूरजभान सिंह यहां से चुनकर विधानसभा पहुंचे। 2005 में अनंत सिंह पहली बार जदयू के टिकट पर जीते। तब से वे लगातार मोकामा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। हालांकि साल 2015 में वे निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत हासिल की। रावणराज बनाम रामराज की बहस पटना जिले का मोकामा विधानसभा क्षेत्र मुंगेर लोकसभा क्षेत्र में आता है। जदयू सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को मलाल है कि उन्हें सबसे कम वोट मोकामा से मिला। चुनावी सभाओं में वे अपनी पीड़ा दोहराते भी हैं। कहते हैं- मैं लोकसभा चुनाव में हर विधानसभा क्षेत्र से जीत गया। बस मोकामा से ही कम वोट मिले। तभी प्रण लिया कि इसबार मोकामा को रावणराज से मुक्ति दिलाना है और रामराज स्थापित करना है। यह मुद्दा चर्चित हो गया है। अब देखना यह होगा कि तीर निशाने पर लगता है या नहीं। जिसके पक्ष में भूमिहार वोटर अधिक, जीत की संभावना उतनी ज्यादा यहां भूमिहार वोटर ही निर्णायक होता है। इसबार भूमिहार वोट बंटेगा। जिस दल के पक्ष में जितने अधिक भूमिहार वोट जाएंगे उसकी जीत की संभावना उतनी अधिक होगी। यहां करीब 70 हजार भूमिहार, 40 हजार कुर्मी, 30 हजार यादव, 16 हजार पासवान, 10 हजार मुस्लिम वाेटर हैं। शेष में अन्य जातियों के वोटर हैं। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today 80 के दशक तक मोकामा उद्योग-धंधे के लिए जाना जाता था। पुराने लोग कहते हैं-यह बिहार का मिनी कोलकाता कहलाता था।

मोकामा विधानसभा क्षेत्र में 8 प्रत्याशी मैदान में हैं। राजद से निवर्तमान विधायक अनंत सिंह, जदयू से राजीव लोचन नारायण सिंह और लोजपा से सुरेश सिंह निषाद मैदान में हैं। भूमिहार बहुल इस क्षेत्र में इसबार भी इसी जाति के मतदाता निर्णायक होंगे। पिछले चुनाव में जाप के टिकट पर चुनाव लड़े ललन सिंह इसबार जदयू के टिकट के दावेदार थे।

अंतिम समय में जदयू ने राजीव लोचन नारायण सिंह को उम्मीदवार बना दिया। ऐसे में ललन सिंह के समर्थक नाराज हैं। टाल के किसान तो नाराज हैं ही। कुछ दिन पहले यहां के किसान धरने पर बैठ गए थे। टाल में पानी लगा है और बुआई का समय बीता जा रहा है। ऐसे में राजद और जदयू दोनों की कोशिश टाल के किसानों को मनाने और ललन के समर्थकों को अपने पाले में करने की चल रही है।
क्षेत्र में कमोबेश सड़कें हर जगह बन गई हैं। लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति लचर है। मोकामा के कन्हैया सिंह ने कहा-इलाके में ढंग का अस्पताल नहीं है। मरीज के गंभीर हाेने पर बाढ़ या पटना जाना पड़ता है। भदौर के सनोज सिंह कहते हैं-गांव में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है, जिसके डॉक्टर 15 दिन में एकबार आते हैं।

मोकामा टाल 1.06 लाख हेक्टेयर में फैला है। यहां के किसान दावा करते हैं कि सरकार चाह ले तो हम पूरे देश को दाल खिला सकते हैं। लेकिन, इन किसानों के घर की बेटियां दो साल से ब्याही नहीं गई हैं। मरांची के नृत्य गोपाल सिंह कहते हैं- दो साल से बुआई के समय पानी लग जाता है। अक्टूबर और नवंबर ही बुआई का समय है और जाकर देखिए टाल में पानी ही पानी है।

ऐसे में हमारी आमदनी ठप है। कुछ अपवाद को छोड़ दें तो इलाके में दो साल से बेटियों की शादी नहीं हुई है। ट्रांसपाेर्टर बबलू और सुरेंद्र सिंह कहते हैं-बालू खनन बंद है। मोकामा पुल की स्थिति जर्जर है। ऐसे में हमसबों का यह धंधा भी चौपट हो गया है। लेकिन, इन कमियों को न तो लोग प्रमुखता दे रहे हैं और न ही यहां के प्रत्याशी।
धीरे-धीरे बंद हो गए सारे उद्योग: 80 के दशक तक मोकामा उद्योग-धंधे के लिए जाना जाता था। पुराने लोग कहते हैं-यह बिहार का मिनी कोलकाता कहलाता था। धीरे-धीरे यहां बाहुबलियों के बीच अदावत शुरू हुई और सब कुछ बंद होता चला गया। मोकामा में आजादी के समय स्थापित भारत वैगन, बाटा फैक्ट्री, सूत मिल बंद हो गई। शराबबंदी के बाद मैकडॉवेल की फैक्ट्री भी बंद कर दी गई।
30 साल से बाहुबली ही कर रहे प्रतिनिधित्व

बीते तीन दशक यानी 30 साल से मोकामा का प्रतिनिधित्व बाहुबली ही करते आ रहे हैं। 1990 में पहली बार छोटे सरकार कहे जाने वाले अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह जनता दल के टिकट पर विधायक बने थे। 1995 में भी दिलीप सिंह ने ही यहां का प्रतिनिधित्व किया। साल 2000 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर बाहुबली सूरजभान सिंह यहां से चुनकर विधानसभा पहुंचे। 2005 में अनंत सिंह पहली बार जदयू के टिकट पर जीते। तब से वे लगातार मोकामा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। हालांकि साल 2015 में वे निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत हासिल की।
रावणराज बनाम रामराज की बहस
पटना जिले का मोकामा विधानसभा क्षेत्र मुंगेर लोकसभा क्षेत्र में आता है। जदयू सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को मलाल है कि उन्हें सबसे कम वोट मोकामा से मिला। चुनावी सभाओं में वे अपनी पीड़ा दोहराते भी हैं। कहते हैं- मैं लोकसभा चुनाव में हर विधानसभा क्षेत्र से जीत गया। बस मोकामा से ही कम वोट मिले। तभी प्रण लिया कि इसबार मोकामा को रावणराज से मुक्ति दिलाना है और रामराज स्थापित करना है। यह मुद्दा चर्चित हो गया है। अब देखना यह होगा कि तीर निशाने पर लगता है या नहीं।

जिसके पक्ष में भूमिहार वोटर अधिक, जीत की संभावना उतनी ज्यादा
यहां भूमिहार वोटर ही निर्णायक होता है। इसबार भूमिहार वोट बंटेगा। जिस दल के पक्ष में जितने अधिक भूमिहार वोट जाएंगे उसकी जीत की संभावना उतनी अधिक होगी। यहां करीब 70 हजार भूमिहार, 40 हजार कुर्मी, 30 हजार यादव, 16 हजार पासवान, 10 हजार मुस्लिम वाेटर हैं। शेष में अन्य जातियों के वोटर हैं।



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80 के दशक तक मोकामा उद्योग-धंधे के लिए जाना जाता था। पुराने लोग कहते हैं-यह बिहार का मिनी कोलकाता कहलाता था।


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