(मधुरेश) इतने दिन न हुए कि लोग भूल जाएं। डॉ. रंजन यादव का जमाना था। लालू राज के असरदार पार्ट। बड़ी हैसियत। अबकी चुनाव में? पता नहीं, उनका एक भी उम्मीदवार जमानत बचा पाएगा या नहीं, मगर डॉक्क साहब अपनी सरकार के मुख्यमंत्री और दो उप मुख्यमंत्रियों की जाति व धर्म तय करके बैठे हुए हैं। मुख्यमंत्री यादव होगा। एक उपमुख्यमंत्री मुसलमान होगा, दूसरा दलित। डॉक्क साहब ने अपनी पार्टी (जनता दल राष्‍ट्रवादी) के 150 उम्मीदवारों के लड़ने की बात कही है। राजद से जदयू में घूमने के बाद डाक्क साहब ने आखिरकार अपनी पार्टी बनाई; भाजपा से दुराव के बाद अचानक इस बार के बिहार चुनाव में प्रकट हुए यशवंत सिन्हा के साथ हुए। कई और नेता, संगठन इकट्ठा हुए। यूडीए (यूनाइटेड डेमोक्रेटिक एलायंस) बना। ‘बदलो बिहार-बनाओ बेहतर बिहार’ का नारा गूंजा। यूडीए को गैर एनडीए व गैर महागठबंधन विकल्प के रूप में पेश किया गया। गलबहियां। विक्ट्री का पोज देती नेताओं की तस्वीरें। लेकिन यह क्या? देवेंद्र यादव ने यूडीए में ‘एस’ जोड़कर नया एलायंस बना लिया। मजेदार कि उन्होंने कुछ ही दिन बाद इसमें ‘जी’ जोड़कर एक और एलायंस बना लिया। एक नेता काे तो यह तक याद नहीं कितने दल बदले यूडीए में नागमणि भी हैं। खुद उनको भी ठीक से यह सीक्वेंस याद नहीं है कि वे कब-कब किस पार्टी में रहे? यूडीए में रहते हुए भी उनका मन डोलते रहता है। अभी उन्होंने लालू प्रसाद की तारीफ की। उनकी पत्नी सुचित्रा सिन्हा कुर्था से चुनाव लड़ रहीं हैं। उपेंद्र कुशवाहा से अलग हुए प्रो. अरुण कुमार की पार्टी भारतीय सब लोग पार्टी की उम्मीदवार हैं। यह पार्टी भी यूडीए में है। सुचित्रा के लिए छपे पोस्टर में प्रो. रामजतन सिन्हा की भी तस्वीर है। प्रो. सिन्हा को कुछ ही दिन पहले ज्ञान हुआ कि उन्होंने कांग्रेस छोड़कर जदयू में आकर जिंदगी की सबसे बड़ी सियासी भूल की। जदयू छोड़ते वक्त उन्होंने नीतीश को हराने की कसम खाई। नींव की एक ईंट खिसकते ही एलायंस डगमगाया: बीते जून के आखिरी हफ्ते में यूडीए में शामिल पार्टियों व संगठनों के नेता यह कहते हुए एक हुए और एक ही रहने की कसम खाई कि ‘बिहार में एनडीए तथा महागठबंधन से अलग एक व्यापक राजनीतिक गोलबंदी की बड़ी दरकार है।’ मगर देवेंद्र यादव के रूप में खिसकी नींव की एक ईंट ने एलायंस को डगमगाया। कई लोग इधर से उधर हुए। न साथ रह पाते हैं, न ही अलग: समाजवादियों के बारे में पुरानी धारणा रही है कि वे ‘न ज्यादा दिन साथ रहते हैं, न ही अलग।’ यूडीए के खास किरदार नरेंद्र सिंह बहुत दिन तक कहते रहे कि बिहार की बेहतरी के लिए बड़ा आंदोलन किया जाए। मगर अब खुद अपने दोनों बेटों (अजय प्रताप सिंह, सुमित कुमार सिंह) को चुनाव जिताने में जुट गए हैं। नरेंद्र सिंह के पास भी एक एलायंस है-’बिहार नव निर्माण मोर्चा।’ कंफ्यूजन को सिरे से किया खारिज कई और बातों ने यूडीए के राष्ट्रीय संयोजक यशवंत सिन्हा को परेशान रखा। और शायद इन्हीं कारणों से वे चुनाव के पीक आवर में बिहार से दूर रहे हैं। वे संगठन में कंफ्यूजन या कमजोरी की बात को सिरे से खारिज करते रहे हैं। जन संघर्ष दल के राष्ट्रीय महासचिव पूर्णमासी राम पर, इन सबका कोई मतलब नहीं रहा। वे अपनी पार्टी लेकर यूडीए में चले आए। यूडीए की संरचना दिलचस्प है। इसमें 17 पार्टियां, संगठन हैं। ज्यादातर अपने बूते चुनाव लड़ रहे। हां, बैनर जरूर यूडीए का है। रमई राम एक उम्र को जी चुके हैं। युवा होते राजद ने उनके टिकट से छेड़छाड़ नहीं की। ‘हम’ सुप्रीमो मांझी ने तो चुनाव से पहले ही अपने को ठीक से सेट कर लिया। अबकी चुनाव में पार्टियों या गठबंधनों की बहुलता ने भी एक उम्र पार कर चुके नेताओं पर चुनाव को पूरी तरह सवार कर देने की खूब गुंजाइश बनाई। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today The leader does not get old, but when the election is over the leader in old age, then see what happens - VTM Breaking News

  VTM Breaking News

English AND Hindi News latest,Viral,Breaking,Live,Website,India,World,Sport,Business,Movie,Serial,tv,crime,All Type News

Breaking

Post Top Ad


Amazon Best Offer

Wednesday, October 21, 2020

(मधुरेश) इतने दिन न हुए कि लोग भूल जाएं। डॉ. रंजन यादव का जमाना था। लालू राज के असरदार पार्ट। बड़ी हैसियत। अबकी चुनाव में? पता नहीं, उनका एक भी उम्मीदवार जमानत बचा पाएगा या नहीं, मगर डॉक्क साहब अपनी सरकार के मुख्यमंत्री और दो उप मुख्यमंत्रियों की जाति व धर्म तय करके बैठे हुए हैं। मुख्यमंत्री यादव होगा। एक उपमुख्यमंत्री मुसलमान होगा, दूसरा दलित। डॉक्क साहब ने अपनी पार्टी (जनता दल राष्‍ट्रवादी) के 150 उम्मीदवारों के लड़ने की बात कही है। राजद से जदयू में घूमने के बाद डाक्क साहब ने आखिरकार अपनी पार्टी बनाई; भाजपा से दुराव के बाद अचानक इस बार के बिहार चुनाव में प्रकट हुए यशवंत सिन्हा के साथ हुए। कई और नेता, संगठन इकट्ठा हुए। यूडीए (यूनाइटेड डेमोक्रेटिक एलायंस) बना। ‘बदलो बिहार-बनाओ बेहतर बिहार’ का नारा गूंजा। यूडीए को गैर एनडीए व गैर महागठबंधन विकल्प के रूप में पेश किया गया। गलबहियां। विक्ट्री का पोज देती नेताओं की तस्वीरें। लेकिन यह क्या? देवेंद्र यादव ने यूडीए में ‘एस’ जोड़कर नया एलायंस बना लिया। मजेदार कि उन्होंने कुछ ही दिन बाद इसमें ‘जी’ जोड़कर एक और एलायंस बना लिया। एक नेता काे तो यह तक याद नहीं कितने दल बदले यूडीए में नागमणि भी हैं। खुद उनको भी ठीक से यह सीक्वेंस याद नहीं है कि वे कब-कब किस पार्टी में रहे? यूडीए में रहते हुए भी उनका मन डोलते रहता है। अभी उन्होंने लालू प्रसाद की तारीफ की। उनकी पत्नी सुचित्रा सिन्हा कुर्था से चुनाव लड़ रहीं हैं। उपेंद्र कुशवाहा से अलग हुए प्रो. अरुण कुमार की पार्टी भारतीय सब लोग पार्टी की उम्मीदवार हैं। यह पार्टी भी यूडीए में है। सुचित्रा के लिए छपे पोस्टर में प्रो. रामजतन सिन्हा की भी तस्वीर है। प्रो. सिन्हा को कुछ ही दिन पहले ज्ञान हुआ कि उन्होंने कांग्रेस छोड़कर जदयू में आकर जिंदगी की सबसे बड़ी सियासी भूल की। जदयू छोड़ते वक्त उन्होंने नीतीश को हराने की कसम खाई। नींव की एक ईंट खिसकते ही एलायंस डगमगाया: बीते जून के आखिरी हफ्ते में यूडीए में शामिल पार्टियों व संगठनों के नेता यह कहते हुए एक हुए और एक ही रहने की कसम खाई कि ‘बिहार में एनडीए तथा महागठबंधन से अलग एक व्यापक राजनीतिक गोलबंदी की बड़ी दरकार है।’ मगर देवेंद्र यादव के रूप में खिसकी नींव की एक ईंट ने एलायंस को डगमगाया। कई लोग इधर से उधर हुए। न साथ रह पाते हैं, न ही अलग: समाजवादियों के बारे में पुरानी धारणा रही है कि वे ‘न ज्यादा दिन साथ रहते हैं, न ही अलग।’ यूडीए के खास किरदार नरेंद्र सिंह बहुत दिन तक कहते रहे कि बिहार की बेहतरी के लिए बड़ा आंदोलन किया जाए। मगर अब खुद अपने दोनों बेटों (अजय प्रताप सिंह, सुमित कुमार सिंह) को चुनाव जिताने में जुट गए हैं। नरेंद्र सिंह के पास भी एक एलायंस है-’बिहार नव निर्माण मोर्चा।’ कंफ्यूजन को सिरे से किया खारिज कई और बातों ने यूडीए के राष्ट्रीय संयोजक यशवंत सिन्हा को परेशान रखा। और शायद इन्हीं कारणों से वे चुनाव के पीक आवर में बिहार से दूर रहे हैं। वे संगठन में कंफ्यूजन या कमजोरी की बात को सिरे से खारिज करते रहे हैं। जन संघर्ष दल के राष्ट्रीय महासचिव पूर्णमासी राम पर, इन सबका कोई मतलब नहीं रहा। वे अपनी पार्टी लेकर यूडीए में चले आए। यूडीए की संरचना दिलचस्प है। इसमें 17 पार्टियां, संगठन हैं। ज्यादातर अपने बूते चुनाव लड़ रहे। हां, बैनर जरूर यूडीए का है। रमई राम एक उम्र को जी चुके हैं। युवा होते राजद ने उनके टिकट से छेड़छाड़ नहीं की। ‘हम’ सुप्रीमो मांझी ने तो चुनाव से पहले ही अपने को ठीक से सेट कर लिया। अबकी चुनाव में पार्टियों या गठबंधनों की बहुलता ने भी एक उम्र पार कर चुके नेताओं पर चुनाव को पूरी तरह सवार कर देने की खूब गुंजाइश बनाई। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today The leader does not get old, but when the election is over the leader in old age, then see what happens

(मधुरेश) इतने दिन न हुए कि लोग भूल जाएं। डॉ. रंजन यादव का जमाना था। लालू राज के असरदार पार्ट। बड़ी हैसियत। अबकी चुनाव में? पता नहीं, उनका एक भी उम्मीदवार जमानत बचा पाएगा या नहीं, मगर डॉक्क साहब अपनी सरकार के मुख्यमंत्री और दो उप मुख्यमंत्रियों की जाति व धर्म तय करके बैठे हुए हैं। मुख्यमंत्री यादव होगा। एक उपमुख्यमंत्री मुसलमान होगा, दूसरा दलित। डॉक्क साहब ने अपनी पार्टी (जनता दल राष्‍ट्रवादी) के 150 उम्मीदवारों के लड़ने की बात कही है।
राजद से जदयू में घूमने के बाद डाक्क साहब ने आखिरकार अपनी पार्टी बनाई; भाजपा से दुराव के बाद अचानक इस बार के बिहार चुनाव में प्रकट हुए यशवंत सिन्हा के साथ हुए। कई और नेता, संगठन इकट्ठा हुए। यूडीए (यूनाइटेड डेमोक्रेटिक एलायंस) बना। ‘बदलो बिहार-बनाओ बेहतर बिहार’ का नारा गूंजा।

यूडीए को गैर एनडीए व गैर महागठबंधन विकल्प के रूप में पेश किया गया। गलबहियां। विक्ट्री का पोज देती नेताओं की तस्वीरें। लेकिन यह क्या? देवेंद्र यादव ने यूडीए में ‘एस’ जोड़कर नया एलायंस बना लिया। मजेदार कि उन्होंने कुछ ही दिन बाद इसमें ‘जी’ जोड़कर एक और एलायंस बना लिया।
एक नेता काे तो यह तक याद नहीं कितने दल बदले

यूडीए में नागमणि भी हैं। खुद उनको भी ठीक से यह सीक्वेंस याद नहीं है कि वे कब-कब किस पार्टी में रहे? यूडीए में रहते हुए भी उनका मन डोलते रहता है। अभी उन्होंने लालू प्रसाद की तारीफ की। उनकी पत्नी सुचित्रा सिन्हा कुर्था से चुनाव लड़ रहीं हैं। उपेंद्र कुशवाहा से अलग हुए प्रो. अरुण कुमार की पार्टी भारतीय सब लोग पार्टी की उम्मीदवार हैं।

यह पार्टी भी यूडीए में है। सुचित्रा के लिए छपे पोस्टर में प्रो. रामजतन सिन्हा की भी तस्वीर है। प्रो. सिन्हा को कुछ ही दिन पहले ज्ञान हुआ कि उन्होंने कांग्रेस छोड़कर जदयू में आकर जिंदगी की सबसे बड़ी सियासी भूल की। जदयू छोड़ते वक्त उन्होंने नीतीश को हराने की कसम खाई।

नींव की एक ईंट खिसकते ही एलायंस डगमगाया: बीते जून के आखिरी हफ्ते में यूडीए में शामिल पार्टियों व संगठनों के नेता यह कहते हुए एक हुए और एक ही रहने की कसम खाई कि ‘बिहार में एनडीए तथा महागठबंधन से अलग एक व्यापक राजनीतिक गोलबंदी की बड़ी दरकार है।’ मगर देवेंद्र यादव के रूप में खिसकी नींव की एक ईंट ने एलायंस को डगमगाया। कई लोग इधर से उधर हुए।

न साथ रह पाते हैं, न ही अलग: समाजवादियों के बारे में पुरानी धारणा रही है कि वे ‘न ज्यादा दिन साथ रहते हैं, न ही अलग।’ यूडीए के खास किरदार नरेंद्र सिंह बहुत दिन तक कहते रहे कि बिहार की बेहतरी के लिए बड़ा आंदोलन किया जाए। मगर अब खुद अपने दोनों बेटों (अजय प्रताप सिंह, सुमित कुमार सिंह) को चुनाव जिताने में जुट गए हैं। नरेंद्र सिंह के पास भी एक एलायंस है-’बिहार नव निर्माण मोर्चा।’

कंफ्यूजन को सिरे से किया खारिज
कई और बातों ने यूडीए के राष्ट्रीय संयोजक यशवंत सिन्हा को परेशान रखा। और शायद इन्हीं कारणों से वे चुनाव के पीक आवर में बिहार से दूर रहे हैं। वे संगठन में कंफ्यूजन या कमजोरी की बात को सिरे से खारिज करते रहे हैं। जन संघर्ष दल के राष्ट्रीय महासचिव पूर्णमासी राम पर, इन सबका कोई मतलब नहीं रहा। वे अपनी पार्टी लेकर यूडीए में चले आए। यूडीए की संरचना दिलचस्प है।

इसमें 17 पार्टियां, संगठन हैं। ज्यादातर अपने बूते चुनाव लड़ रहे। हां, बैनर जरूर यूडीए का है। रमई राम एक उम्र को जी चुके हैं। युवा होते राजद ने उनके टिकट से छेड़छाड़ नहीं की। ‘हम’ सुप्रीमो मांझी ने तो चुनाव से पहले ही अपने को ठीक से सेट कर लिया। अबकी चुनाव में पार्टियों या गठबंधनों की बहुलता ने भी एक उम्र पार कर चुके नेताओं पर चुनाव को पूरी तरह सवार कर देने की खूब गुंजाइश बनाई।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
The leader does not get old, but when the election is over the leader in old age, then see what happens


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/35frVUg

No comments:

Post a Comment

Please don’t enter any spam link in the comment

Featured post

‘Voodoo Rituals’ and Banana Wars: U.S. Military Action in Latin America https://ift.tt/iGwMz0R

By Unknown Author from NYT Home Page https://ift.tt/p0odGvL

Post Bottom Ad