(आलोक द्विवेदी) कोरोना संक्रमण की वजह से स्कूल बंद हैं। इसलिए बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं। बड़ी संख्या में सरकारी और निजी कंपनियाें के कर्मचारी घर से ही कार्यालय का काम निपटा रहे हैं। लगातार ऑनलाइन काम और पढ़ाई का असर बच्चों और युवाओं के दिमाग पर पढ़ रहा है। ये नोमो फोबिया के शिकार हो रहे हैं। इसकी वजह से कई बच्चे रात में भी उठकर माेबाइल और लैपटाॅप चेक करते हैं। उन्हें लगता है काेई जरूरी मैसेज आया हाेगा। आईजीआईएमएस, पीएमसीएच सहित निजी अस्पतालाें में हर महीने 300 से अधिक ऐसे मामले आ रहे हैं। बेचैनी, सिर दर्द, सांस लेने में तकलीफ, काल्पनिक दुनिया का आभास, याददाश्त में कमी की शिकायत हो रही है। डॉक्टरों के मुताबिक लगातार मोबाइल के इस्तेमाल से बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में भी समस्या हो सकती है। डाॅक्टर कहते हैं- मानसिक विकास के साथ ही आंखों पर भी असर वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. विवेक विशाल का कहना है कि मोबाइल और लैपटॉप के लगातार इस्तेमाल से दिनचर्या में बदलाव हो रहा है। इसका असर मानसिक और शारीरिक विकास पर भी पड़ रहा है। आईजीआईएमएस के मनोचिकित्सा विभाग के हेड डॉ. राजेश कुमार शर्मा के मुताबिक नोमो फोबिया का असर तत्काल नहीं दिखाई देता है। कुछ समय बाद बेचैनी, याददाश्त में कमी होने लगती है। लगातार मोबाइल और लैपटॉप के इस्तेमाल से दिमाग में परिवर्तन होने लगता है। आईजीआईएमएस के क्षेत्रीय चक्षु संस्थान के हेड डॉ. विभूति प्रसन्न सिन्हा के मुताबिक, स्वस्थ व्यक्ति एक मिनट में 18 से 20 बार अपनी पलक को खोलता और बंद करता है। लेकिन, मोबाइल और कंप्यूटर के लगातार इस्तेमाल के दौरान बच्चे और युवा एक मिनट में तीन से चार बार ही पलकों को खोलते और बंद करते हैं। इससे आंखों की पुतलियों पर सीधा असर होता है। लाल होने के साथ ही उनका फोकस बड़ा हो जाता है। इससे आंखों में जलन, दर्द, पानी गिरना और लाल हो जाने जैसी समस्याओं के शिकार हो जाते हैं। 6 से 10 साल के बच्चों को भी चश्मा लग जाता है। केस 1- कंकड़बाग का चौथी कक्षा का छात्र रोहन रात में कई बार उठकर मोबाइल चेक करता है। उसकी आदत से माता-पिता लगातार परेशान थे। डॉक्टर से दिखाया तो बीमारी का पता चला। फिलहाल मोबाइल के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। केस 2- पटना सिटी के चौहट्टा का अभय राज सातवीं का छात्र है। वह रात में उठकर मोबाइल और लैपटॉप चेक करता था। उसे डॉक्टर से दिखाया गया ताे उसकी बेचैनी अाैर भूलने की बीमारी का पता चला। केस 3- कुर्जी के अलाउद्दीन प्राइवेट नौकरी करते हैं। साथ ही एमबीए की पढ़ाई कर रहे हैं। घर से ही काम कर रहे हैं। उनकी आंखों में लगातार जलन रहती है अाैर भूलने की बीमारी हो गई है। डॉक्टर की सलाह के बाद मोबाइल व कंप्यूटर का कम इस्तेमाल कर रहे हैं। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today Nomo Phobia, who is constantly studying and working on mobile and laptop, suddenly gets up and checks messages even at night - VTM Breaking News

  VTM Breaking News

English AND Hindi News latest,Viral,Breaking,Live,Website,India,World,Sport,Business,Movie,Serial,tv,crime,All Type News

Breaking

Post Top Ad


Amazon Best Offer

Saturday, September 05, 2020

(आलोक द्विवेदी) कोरोना संक्रमण की वजह से स्कूल बंद हैं। इसलिए बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं। बड़ी संख्या में सरकारी और निजी कंपनियाें के कर्मचारी घर से ही कार्यालय का काम निपटा रहे हैं। लगातार ऑनलाइन काम और पढ़ाई का असर बच्चों और युवाओं के दिमाग पर पढ़ रहा है। ये नोमो फोबिया के शिकार हो रहे हैं। इसकी वजह से कई बच्चे रात में भी उठकर माेबाइल और लैपटाॅप चेक करते हैं। उन्हें लगता है काेई जरूरी मैसेज आया हाेगा। आईजीआईएमएस, पीएमसीएच सहित निजी अस्पतालाें में हर महीने 300 से अधिक ऐसे मामले आ रहे हैं। बेचैनी, सिर दर्द, सांस लेने में तकलीफ, काल्पनिक दुनिया का आभास, याददाश्त में कमी की शिकायत हो रही है। डॉक्टरों के मुताबिक लगातार मोबाइल के इस्तेमाल से बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में भी समस्या हो सकती है। डाॅक्टर कहते हैं- मानसिक विकास के साथ ही आंखों पर भी असर वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. विवेक विशाल का कहना है कि मोबाइल और लैपटॉप के लगातार इस्तेमाल से दिनचर्या में बदलाव हो रहा है। इसका असर मानसिक और शारीरिक विकास पर भी पड़ रहा है। आईजीआईएमएस के मनोचिकित्सा विभाग के हेड डॉ. राजेश कुमार शर्मा के मुताबिक नोमो फोबिया का असर तत्काल नहीं दिखाई देता है। कुछ समय बाद बेचैनी, याददाश्त में कमी होने लगती है। लगातार मोबाइल और लैपटॉप के इस्तेमाल से दिमाग में परिवर्तन होने लगता है। आईजीआईएमएस के क्षेत्रीय चक्षु संस्थान के हेड डॉ. विभूति प्रसन्न सिन्हा के मुताबिक, स्वस्थ व्यक्ति एक मिनट में 18 से 20 बार अपनी पलक को खोलता और बंद करता है। लेकिन, मोबाइल और कंप्यूटर के लगातार इस्तेमाल के दौरान बच्चे और युवा एक मिनट में तीन से चार बार ही पलकों को खोलते और बंद करते हैं। इससे आंखों की पुतलियों पर सीधा असर होता है। लाल होने के साथ ही उनका फोकस बड़ा हो जाता है। इससे आंखों में जलन, दर्द, पानी गिरना और लाल हो जाने जैसी समस्याओं के शिकार हो जाते हैं। 6 से 10 साल के बच्चों को भी चश्मा लग जाता है। केस 1- कंकड़बाग का चौथी कक्षा का छात्र रोहन रात में कई बार उठकर मोबाइल चेक करता है। उसकी आदत से माता-पिता लगातार परेशान थे। डॉक्टर से दिखाया तो बीमारी का पता चला। फिलहाल मोबाइल के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। केस 2- पटना सिटी के चौहट्टा का अभय राज सातवीं का छात्र है। वह रात में उठकर मोबाइल और लैपटॉप चेक करता था। उसे डॉक्टर से दिखाया गया ताे उसकी बेचैनी अाैर भूलने की बीमारी का पता चला। केस 3- कुर्जी के अलाउद्दीन प्राइवेट नौकरी करते हैं। साथ ही एमबीए की पढ़ाई कर रहे हैं। घर से ही काम कर रहे हैं। उनकी आंखों में लगातार जलन रहती है अाैर भूलने की बीमारी हो गई है। डॉक्टर की सलाह के बाद मोबाइल व कंप्यूटर का कम इस्तेमाल कर रहे हैं। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today Nomo Phobia, who is constantly studying and working on mobile and laptop, suddenly gets up and checks messages even at night

(आलोक द्विवेदी) कोरोना संक्रमण की वजह से स्कूल बंद हैं। इसलिए बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं। बड़ी संख्या में सरकारी और निजी कंपनियाें के कर्मचारी घर से ही कार्यालय का काम निपटा रहे हैं। लगातार ऑनलाइन काम और पढ़ाई का असर बच्चों और युवाओं के दिमाग पर पढ़ रहा है। ये नोमो फोबिया के शिकार हो रहे हैं। इसकी वजह से कई बच्चे रात में भी उठकर माेबाइल और लैपटाॅप चेक करते हैं।

उन्हें लगता है काेई जरूरी मैसेज आया हाेगा। आईजीआईएमएस, पीएमसीएच सहित निजी अस्पतालाें में हर महीने 300 से अधिक ऐसे मामले आ रहे हैं। बेचैनी, सिर दर्द, सांस लेने में तकलीफ, काल्पनिक दुनिया का आभास, याददाश्त में कमी की शिकायत हो रही है। डॉक्टरों के मुताबिक लगातार मोबाइल के इस्तेमाल से बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में भी समस्या हो सकती है।
डाॅक्टर कहते हैं- मानसिक विकास के साथ ही आंखों पर भी असर

वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. विवेक विशाल का कहना है कि मोबाइल और लैपटॉप के लगातार इस्तेमाल से दिनचर्या में बदलाव हो रहा है। इसका असर मानसिक और शारीरिक विकास पर भी पड़ रहा है। आईजीआईएमएस के मनोचिकित्सा विभाग के हेड डॉ. राजेश कुमार शर्मा के मुताबिक नोमो फोबिया का असर तत्काल नहीं दिखाई देता है। कुछ समय बाद बेचैनी, याददाश्त में कमी होने लगती है।

लगातार मोबाइल और लैपटॉप के इस्तेमाल से दिमाग में परिवर्तन होने लगता है। आईजीआईएमएस के क्षेत्रीय चक्षु संस्थान के हेड डॉ. विभूति प्रसन्न सिन्हा के मुताबिक, स्वस्थ व्यक्ति एक मिनट में 18 से 20 बार अपनी पलक को खोलता और बंद करता है। लेकिन, मोबाइल और कंप्यूटर के लगातार इस्तेमाल के दौरान बच्चे और युवा एक मिनट में तीन से चार बार ही पलकों को खोलते और बंद करते हैं।

इससे आंखों की पुतलियों पर सीधा असर होता है। लाल होने के साथ ही उनका फोकस बड़ा हो जाता है। इससे आंखों में जलन, दर्द, पानी गिरना और लाल हो जाने जैसी समस्याओं के शिकार हो जाते हैं। 6 से 10 साल के बच्चों को भी चश्मा लग जाता है।

  • केस 1- कंकड़बाग का चौथी कक्षा का छात्र रोहन रात में कई बार उठकर मोबाइल चेक करता है। उसकी आदत से माता-पिता लगातार परेशान थे। डॉक्टर से दिखाया तो बीमारी का पता चला। फिलहाल मोबाइल के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है।
  • केस 2- पटना सिटी के चौहट्टा का अभय राज सातवीं का छात्र है। वह रात में उठकर मोबाइल और लैपटॉप चेक करता था। उसे डॉक्टर से दिखाया गया ताे उसकी बेचैनी अाैर भूलने की बीमारी का पता चला।
  • केस 3- कुर्जी के अलाउद्दीन प्राइवेट नौकरी करते हैं। साथ ही एमबीए की पढ़ाई कर रहे हैं। घर से ही काम कर रहे हैं। उनकी आंखों में लगातार जलन रहती है अाैर भूलने की बीमारी हो गई है। डॉक्टर की सलाह के बाद मोबाइल व कंप्यूटर का कम इस्तेमाल कर रहे हैं।


Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Nomo Phobia, who is constantly studying and working on mobile and laptop, suddenly gets up and checks messages even at night


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3i0ORfd

No comments:

Post a Comment

Please don’t enter any spam link in the comment

Featured post

Close Finish in N.Y.C. Marathon Men’s Race Was One of the Closest Ever https://bit.ly/3LEzooE

By Victor Mather from NYT New York https://nyti.ms/4nAbqZ5

Post Bottom Ad