नई एजुकेशन पॉलिसी को केंद्रीय कैबिनेट से मंजूरी मिल गई है। इसमें एक बड़ा बदलाव एमफिल काे समाप्त करने का हुआ है। जिसकी कई शिक्षाविदों ने सराहना भी की है। पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. रासबिहारी सिंह ने बताया कि एमफिल को बंद करना सही कदम है। यह सिर्फ वक्त की बर्बादी भर रही है। उधर, बिहार के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए बना नया परिनियम एमफिल को महत्वपूर्ण बना रहा है। नए परिनियम में एमफिल में 60 फीसदी से अधिक नंबर पर सात अंक मिलने हैं। जबकि 55 से 60 प्रतिशत नंबर पर पांच अंक मिलने हैं। एमफिल को शिक्षक नियुक्ति में महत्व देना बिहार के शिक्षकों को रास नहीं आ रहा है। पटना विवि शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. रणधीर कुमार सिंह ने कहा कि एमफिल ऐसी डिग्री है जो बिहार के किसी विवि में नहीं दी जाती। ऐसे में बिहार के कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति में एमफिल को वेटेज देने से बिहार के नहीं बाहरी अभ्यर्थियों को लाभ पहुंचेगा। प्रो. सिंह ने कहा कि राज्य में कोई डोमिसाइल नीति नहीं है। न ही बिहार के अभ्यर्थियों को आरक्षण है। ऐसे में एमफिल का महत्व बिहार के आवेदकों से मौका छीनेगा। इसमें बदलाव करना चाहिए और साथ ही शिक्षकों की 80 फीसदी सीटों को बिहार के आवेदकों के लिए आरक्षित करने का प्रावधान लाना चाहिए। नियुक्ति प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए प्रो. रणधीर कुमार सिंह ने शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि बिहार में शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया हमेशा से ही धीमी रही है। यही कारण है कि शिक्षकों और छात्रों का अनुपात कभी तय मानकों के अनुरूप नहीं हो पाता। उन्होंने कहा कि पटना विवि में यह अनुपात लगभग 70 छात्रों पर एक शिक्षक का हो गया है। 870 शिक्षकों में से सिर्फ तीन सौ शिक्षक ही कार्यरत हैं। 870 शिक्षकों की गणना नौ हजार विद्यार्थियों के अनुरुप थी लेकिन आज विवि में 22 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं हैं। इस आधार पर शिक्षक-छात्र अनुपात बेहतर करने के लिए कम से कम 733 शिक्षकों की जरूरत पड़ेगी। एक ही बार बीपीएससी को मिला बहाली करने का मौका राज्य के विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया पिछले चार दशकों में कई बार बदली है। विश्वविद्यालय सेवा आयोग के जरिए 1982 से 2003 तक शिक्षकों की नियुक्ति हुई। इसमें पांच चरणों में शिक्षकों की नियुक्ति हुई। इसमें लगभग ढाई हजार शिक्षकों की नियुक्ति हुई। इसमें 1982, 1987 और 1992 को मिलाकर लगभग 120 शिक्षकों की नियुक्ति राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों में हुई। जबकि 1996 में लगभग 1300 शिक्षक राज्य के 11 विश्वविद्यालयों में नियुक्त किए गए। इसके बाद 2003 में राज्य भर के विश्वविद्यालयों में 1050 शिक्षकों की नियुक्ति की। इसके बाद विवि सेवा आयोग 10 मार्च 2007 को भंग कर दिया गया। 2013 में शिक्षक नियुक्ति का अधिकार बीपीएससी को दिया गया और बीपीएससी द्वारा 3314 शिक्षकों के नियुक्ति की प्रक्रिया को समाप्त करने से पहले ही विवि सेवा आयोग का गठन किया गया। बीपीएससी को एक बार शिक्षक नियुक्ति का मौका दिया गया, जो सात साल में भी पूरा नहीं हुआ। अब एक बार फिर विवि सेवा आयोग नियुक्ति करेगा, लेकिन नियुक्ति के लिए बने परिनियम के प्रावधानों पर शिक्षकों को ऐतराज है। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today In the state, teachers would object to the regulation made for the appointment of university teachers, said - the candidates will be snuffed out from here. - VTM Breaking News

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Wednesday, August 12, 2020

नई एजुकेशन पॉलिसी को केंद्रीय कैबिनेट से मंजूरी मिल गई है। इसमें एक बड़ा बदलाव एमफिल काे समाप्त करने का हुआ है। जिसकी कई शिक्षाविदों ने सराहना भी की है। पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. रासबिहारी सिंह ने बताया कि एमफिल को बंद करना सही कदम है। यह सिर्फ वक्त की बर्बादी भर रही है। उधर, बिहार के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए बना नया परिनियम एमफिल को महत्वपूर्ण बना रहा है। नए परिनियम में एमफिल में 60 फीसदी से अधिक नंबर पर सात अंक मिलने हैं। जबकि 55 से 60 प्रतिशत नंबर पर पांच अंक मिलने हैं। एमफिल को शिक्षक नियुक्ति में महत्व देना बिहार के शिक्षकों को रास नहीं आ रहा है। पटना विवि शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. रणधीर कुमार सिंह ने कहा कि एमफिल ऐसी डिग्री है जो बिहार के किसी विवि में नहीं दी जाती। ऐसे में बिहार के कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति में एमफिल को वेटेज देने से बिहार के नहीं बाहरी अभ्यर्थियों को लाभ पहुंचेगा। प्रो. सिंह ने कहा कि राज्य में कोई डोमिसाइल नीति नहीं है। न ही बिहार के अभ्यर्थियों को आरक्षण है। ऐसे में एमफिल का महत्व बिहार के आवेदकों से मौका छीनेगा। इसमें बदलाव करना चाहिए और साथ ही शिक्षकों की 80 फीसदी सीटों को बिहार के आवेदकों के लिए आरक्षित करने का प्रावधान लाना चाहिए। नियुक्ति प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए प्रो. रणधीर कुमार सिंह ने शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि बिहार में शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया हमेशा से ही धीमी रही है। यही कारण है कि शिक्षकों और छात्रों का अनुपात कभी तय मानकों के अनुरूप नहीं हो पाता। उन्होंने कहा कि पटना विवि में यह अनुपात लगभग 70 छात्रों पर एक शिक्षक का हो गया है। 870 शिक्षकों में से सिर्फ तीन सौ शिक्षक ही कार्यरत हैं। 870 शिक्षकों की गणना नौ हजार विद्यार्थियों के अनुरुप थी लेकिन आज विवि में 22 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं हैं। इस आधार पर शिक्षक-छात्र अनुपात बेहतर करने के लिए कम से कम 733 शिक्षकों की जरूरत पड़ेगी। एक ही बार बीपीएससी को मिला बहाली करने का मौका राज्य के विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया पिछले चार दशकों में कई बार बदली है। विश्वविद्यालय सेवा आयोग के जरिए 1982 से 2003 तक शिक्षकों की नियुक्ति हुई। इसमें पांच चरणों में शिक्षकों की नियुक्ति हुई। इसमें लगभग ढाई हजार शिक्षकों की नियुक्ति हुई। इसमें 1982, 1987 और 1992 को मिलाकर लगभग 120 शिक्षकों की नियुक्ति राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों में हुई। जबकि 1996 में लगभग 1300 शिक्षक राज्य के 11 विश्वविद्यालयों में नियुक्त किए गए। इसके बाद 2003 में राज्य भर के विश्वविद्यालयों में 1050 शिक्षकों की नियुक्ति की। इसके बाद विवि सेवा आयोग 10 मार्च 2007 को भंग कर दिया गया। 2013 में शिक्षक नियुक्ति का अधिकार बीपीएससी को दिया गया और बीपीएससी द्वारा 3314 शिक्षकों के नियुक्ति की प्रक्रिया को समाप्त करने से पहले ही विवि सेवा आयोग का गठन किया गया। बीपीएससी को एक बार शिक्षक नियुक्ति का मौका दिया गया, जो सात साल में भी पूरा नहीं हुआ। अब एक बार फिर विवि सेवा आयोग नियुक्ति करेगा, लेकिन नियुक्ति के लिए बने परिनियम के प्रावधानों पर शिक्षकों को ऐतराज है। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today In the state, teachers would object to the regulation made for the appointment of university teachers, said - the candidates will be snuffed out from here.

नई एजुकेशन पॉलिसी को केंद्रीय कैबिनेट से मंजूरी मिल गई है। इसमें एक बड़ा बदलाव एमफिल काे समाप्त करने का हुआ है। जिसकी कई शिक्षाविदों ने सराहना भी की है। पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. रासबिहारी सिंह ने बताया कि एमफिल को बंद करना सही कदम है। यह सिर्फ वक्त की बर्बादी भर रही है। उधर, बिहार के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए बना नया परिनियम एमफिल को महत्वपूर्ण बना रहा है। नए परिनियम में एमफिल में 60 फीसदी से अधिक नंबर पर सात अंक मिलने हैं। जबकि 55 से 60 प्रतिशत नंबर पर पांच अंक मिलने हैं।

एमफिल को शिक्षक नियुक्ति में महत्व देना बिहार के शिक्षकों को रास नहीं आ रहा है। पटना विवि शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. रणधीर कुमार सिंह ने कहा कि एमफिल ऐसी डिग्री है जो बिहार के किसी विवि में नहीं दी जाती। ऐसे में बिहार के कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति में एमफिल को वेटेज देने से बिहार के नहीं बाहरी अभ्यर्थियों को लाभ पहुंचेगा।

प्रो. सिंह ने कहा कि राज्य में कोई डोमिसाइल नीति नहीं है। न ही बिहार के अभ्यर्थियों को आरक्षण है। ऐसे में एमफिल का महत्व बिहार के आवेदकों से मौका छीनेगा। इसमें बदलाव करना चाहिए और साथ ही शिक्षकों की 80 फीसदी सीटों को बिहार के आवेदकों के लिए आरक्षित करने का प्रावधान लाना चाहिए।
नियुक्ति प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए

प्रो. रणधीर कुमार सिंह ने शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि बिहार में शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया हमेशा से ही धीमी रही है। यही कारण है कि शिक्षकों और छात्रों का अनुपात कभी तय मानकों के अनुरूप नहीं हो पाता। उन्होंने कहा कि पटना विवि में यह अनुपात लगभग 70 छात्रों पर एक शिक्षक का हो गया है। 870 शिक्षकों में से सिर्फ तीन सौ शिक्षक ही कार्यरत हैं। 870 शिक्षकों की गणना नौ हजार विद्यार्थियों के अनुरुप थी लेकिन आज विवि में 22 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं हैं। इस आधार पर शिक्षक-छात्र अनुपात बेहतर करने के लिए कम से कम 733 शिक्षकों की जरूरत पड़ेगी।

एक ही बार बीपीएससी को मिला बहाली करने का मौका
राज्य के विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया पिछले चार दशकों में कई बार बदली है। विश्वविद्यालय सेवा आयोग के जरिए 1982 से 2003 तक शिक्षकों की नियुक्ति हुई। इसमें पांच चरणों में शिक्षकों की नियुक्ति हुई। इसमें लगभग ढाई हजार शिक्षकों की नियुक्ति हुई। इसमें 1982, 1987 और 1992 को मिलाकर लगभग 120 शिक्षकों की नियुक्ति राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों में हुई। जबकि 1996 में लगभग 1300 शिक्षक राज्य के 11 विश्वविद्यालयों में नियुक्त किए गए। इसके बाद 2003 में राज्य भर के विश्वविद्यालयों में 1050 शिक्षकों की नियुक्ति की।

इसके बाद विवि सेवा आयोग 10 मार्च 2007 को भंग कर दिया गया। 2013 में शिक्षक नियुक्ति का अधिकार बीपीएससी को दिया गया और बीपीएससी द्वारा 3314 शिक्षकों के नियुक्ति की प्रक्रिया को समाप्त करने से पहले ही विवि सेवा आयोग का गठन किया गया। बीपीएससी को एक बार शिक्षक नियुक्ति का मौका दिया गया, जो सात साल में भी पूरा नहीं हुआ। अब एक बार फिर विवि सेवा आयोग नियुक्ति करेगा, लेकिन नियुक्ति के लिए बने परिनियम के प्रावधानों पर शिक्षकों को ऐतराज है।



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