बिहार के नवादा जिले का रहने वाला सुशांत कुमार सिन्हा खूब मेहनत कर रहा था। बिना रुके, बिना थके लगातार कई दिनों से पढ़ाई करते देख मैंने उसे समझाने का प्रयास किया कि वह थोड़ा आराम कर ले। लेकिन, सुशांत कहां मानने वाला था। वह किताबों से अपने-आप को दूर नहीं कर रहा था। एक दिन मैंने आखिर सुशांत से पूछा कि क्यों वह इतना सीरियस है। मैंने समझाते हुए कहा कि इतना मत सोचो। अगर तुम आईआईटी नहीं भी क्वालीफाय कर पाए तब एनआईटी तो आराम से पहुंच ही जाओगे। इतना सुनने के बाद सुशांत की आंखों में आंसू आ गए। वह भावुक होकर बोला कि सर मुझे तो आईआईटी करना ही है। और अगर मैं आईआईटी क्वालीफाय कर गया तब मेरे पिताजी मुझसे और मेरे पूरे परिवार से मिलने घर आएंगे। सर पिताजी से मिले एक जमाना हो गया है। मेरी मां और छोटी बहन भी उनका इंतजार करती रहती है। मैंने पूछा कि आखिर हुआ क्या है? पिताजी कहां रहते हैं ? और क्यों नहीं आते हैं तुम लोगों से मिलने? तब सुशांत ने बताया कि उसके पिता अमरेन्द्र कुमार सिन्हा को दादाजी पढ़ने के लिए कहा करते थे। दादाजी एक व्यापारी के पास मुंशी का काम करते थे और समझते थे कि उनके पास खेती के लिए जमीन नहीं है। इस स्तिथि में कायस्थ परिवार के लिए पढ़कर मुंशी बनने के सिवा और कोई रास्ता नहीं। अमरेन्द्र कुमार ने जहां तक हो सका सीमित साधनों में पढ़ने की पूरी कोशिश भी की। लेकिन, उन्हें कोई नौकरी नहीं मिली। शादी के बाद दो बच्चों की परवरिश की खातिर काम की तलाश में पटना आ गए थे। लेकिन, पटना में कोई स्थाई काम नहीं मिल रहा था। एक महीने कुछ काम मिलता फिर महीनों तक का इंतजार। अब दाल रोटी पर भी आफत आ गई थी। आर्थिक तंगी की वजह से सुशांत की माताजी अपने दोनों बच्चों के साथ मायके बेगुसराय आ गईं थीं। सुशांत ने पढ़ाई शुरू कर दी थी। किताब-कॉपी के लिए भी पैसे नहीं होते थे। इस हालत में अमरेन्द्र कुमार किसी की मदद से गुजरात चले गए। वहां एक फैक्ट्री में गार्ड का काम मिल गया। कभी दिन में और कभी रात-रात भर जागकर अपनी ड्यूटी करते थे। आधे पेट खाना खाकर दो पैसे बचाकर परिवार को भेजते थे। पिता को अपने घर आए हुए दो साल से भी ज्यादा हो जाता था। इधर सुशांत ने खुद को पढ़ाई में पूरी तरह झोंक दिया था। जिस मोहल्ले में वह रहता था वहां के कुछ बच्चे शाम के वक्त ट्यूशन पढ़ने जाते थे। सुशांत के मन में भी बहुत सारे प्रश्न उठते थे। उसका भी मन करता था कि ट्यूशन के लिए जाए और सवालों का वहां जवाब पा सके। लेकिन पैसों की कमी के चलते ऐसा हो न सका। बावजूद इसके सुशांत कभी हिम्मत नहीं हारा। सुशांत बहुत ही अच्छे अंकों के साथ दसवीं कक्षा पास कर चुका था। घर में खुशी का माहौल थी। यह संयोग की बात थी कि रिजल्ट के दिन उसके पिता घर पर ही थे। सुशांत बताता है कि आगे की पढ़ाई के लिए अब उसके पास सिर्फ सुपर 30 ही एक मात्र विकल्प था। सुपर 30 का एंट्रेंस टेस्ट क्वालीफाय कर वह इसका सदस्य बन गया। मेहनत तो इतनी करता था कि सभी दंग रह जाते थे। वह स्वाभाव से भी मिलनसार था। उसके पूरे परिवार की इच्छा थी कि पिता एकबार फिर घर आएं, लेकिन पिता के पास छुट्टी नहीं थी। अब दो साल से भी ज्यादा हो गए थे और वे घर नहीं आए थे। लेकिन, उन्होंने कहा था कि अगर सुशांत को आईआईटी में दाखिला मिलेगा तब वह जरूर घर आएंगे। और इसी उम्मीद में सुशांत खूब पढ़ाई करता था। आखिरकार वह दिन भी गया जब सुशांत आईआईटी प्रवेश-परीक्षा क्वालीफाय कर गया। उसकी खुशियों का ठिकाना नहीं था। आईआईटी क्वालीफाय करने की खुशी तो उसे थी ही, उससे ज्यादा इस बात की खुशी थी कि अब उसके पिता जरूर घर आएंगे। और फिर उसके पिता घर आए। सुशांत का एडमिशन आईआईटी बीएचयू में हो गया। अब तो संघर्ष का दौर खत्म भी हो गया है और सुशांत की नौकरी एक बहुत ही बड़ी कंपनी में लग गई है। सुशांत का अब एक और सपना है। उसके गांव में कोई स्कूल नहीं है। वह चाहता है कि कुछ दिनों के बाद वह अपने पैसों से गांव में एक स्कूल खुलवा दें। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today Father was a guard, barely used to books, IIT engineer - VTM Breaking News

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Wednesday, August 12, 2020

बिहार के नवादा जिले का रहने वाला सुशांत कुमार सिन्हा खूब मेहनत कर रहा था। बिना रुके, बिना थके लगातार कई दिनों से पढ़ाई करते देख मैंने उसे समझाने का प्रयास किया कि वह थोड़ा आराम कर ले। लेकिन, सुशांत कहां मानने वाला था। वह किताबों से अपने-आप को दूर नहीं कर रहा था। एक दिन मैंने आखिर सुशांत से पूछा कि क्यों वह इतना सीरियस है। मैंने समझाते हुए कहा कि इतना मत सोचो। अगर तुम आईआईटी नहीं भी क्वालीफाय कर पाए तब एनआईटी तो आराम से पहुंच ही जाओगे। इतना सुनने के बाद सुशांत की आंखों में आंसू आ गए। वह भावुक होकर बोला कि सर मुझे तो आईआईटी करना ही है। और अगर मैं आईआईटी क्वालीफाय कर गया तब मेरे पिताजी मुझसे और मेरे पूरे परिवार से मिलने घर आएंगे। सर पिताजी से मिले एक जमाना हो गया है। मेरी मां और छोटी बहन भी उनका इंतजार करती रहती है। मैंने पूछा कि आखिर हुआ क्या है? पिताजी कहां रहते हैं ? और क्यों नहीं आते हैं तुम लोगों से मिलने? तब सुशांत ने बताया कि उसके पिता अमरेन्द्र कुमार सिन्हा को दादाजी पढ़ने के लिए कहा करते थे। दादाजी एक व्यापारी के पास मुंशी का काम करते थे और समझते थे कि उनके पास खेती के लिए जमीन नहीं है। इस स्तिथि में कायस्थ परिवार के लिए पढ़कर मुंशी बनने के सिवा और कोई रास्ता नहीं। अमरेन्द्र कुमार ने जहां तक हो सका सीमित साधनों में पढ़ने की पूरी कोशिश भी की। लेकिन, उन्हें कोई नौकरी नहीं मिली। शादी के बाद दो बच्चों की परवरिश की खातिर काम की तलाश में पटना आ गए थे। लेकिन, पटना में कोई स्थाई काम नहीं मिल रहा था। एक महीने कुछ काम मिलता फिर महीनों तक का इंतजार। अब दाल रोटी पर भी आफत आ गई थी। आर्थिक तंगी की वजह से सुशांत की माताजी अपने दोनों बच्चों के साथ मायके बेगुसराय आ गईं थीं। सुशांत ने पढ़ाई शुरू कर दी थी। किताब-कॉपी के लिए भी पैसे नहीं होते थे। इस हालत में अमरेन्द्र कुमार किसी की मदद से गुजरात चले गए। वहां एक फैक्ट्री में गार्ड का काम मिल गया। कभी दिन में और कभी रात-रात भर जागकर अपनी ड्यूटी करते थे। आधे पेट खाना खाकर दो पैसे बचाकर परिवार को भेजते थे। पिता को अपने घर आए हुए दो साल से भी ज्यादा हो जाता था। इधर सुशांत ने खुद को पढ़ाई में पूरी तरह झोंक दिया था। जिस मोहल्ले में वह रहता था वहां के कुछ बच्चे शाम के वक्त ट्यूशन पढ़ने जाते थे। सुशांत के मन में भी बहुत सारे प्रश्न उठते थे। उसका भी मन करता था कि ट्यूशन के लिए जाए और सवालों का वहां जवाब पा सके। लेकिन पैसों की कमी के चलते ऐसा हो न सका। बावजूद इसके सुशांत कभी हिम्मत नहीं हारा। सुशांत बहुत ही अच्छे अंकों के साथ दसवीं कक्षा पास कर चुका था। घर में खुशी का माहौल थी। यह संयोग की बात थी कि रिजल्ट के दिन उसके पिता घर पर ही थे। सुशांत बताता है कि आगे की पढ़ाई के लिए अब उसके पास सिर्फ सुपर 30 ही एक मात्र विकल्प था। सुपर 30 का एंट्रेंस टेस्ट क्वालीफाय कर वह इसका सदस्य बन गया। मेहनत तो इतनी करता था कि सभी दंग रह जाते थे। वह स्वाभाव से भी मिलनसार था। उसके पूरे परिवार की इच्छा थी कि पिता एकबार फिर घर आएं, लेकिन पिता के पास छुट्टी नहीं थी। अब दो साल से भी ज्यादा हो गए थे और वे घर नहीं आए थे। लेकिन, उन्होंने कहा था कि अगर सुशांत को आईआईटी में दाखिला मिलेगा तब वह जरूर घर आएंगे। और इसी उम्मीद में सुशांत खूब पढ़ाई करता था। आखिरकार वह दिन भी गया जब सुशांत आईआईटी प्रवेश-परीक्षा क्वालीफाय कर गया। उसकी खुशियों का ठिकाना नहीं था। आईआईटी क्वालीफाय करने की खुशी तो उसे थी ही, उससे ज्यादा इस बात की खुशी थी कि अब उसके पिता जरूर घर आएंगे। और फिर उसके पिता घर आए। सुशांत का एडमिशन आईआईटी बीएचयू में हो गया। अब तो संघर्ष का दौर खत्म भी हो गया है और सुशांत की नौकरी एक बहुत ही बड़ी कंपनी में लग गई है। सुशांत का अब एक और सपना है। उसके गांव में कोई स्कूल नहीं है। वह चाहता है कि कुछ दिनों के बाद वह अपने पैसों से गांव में एक स्कूल खुलवा दें। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today Father was a guard, barely used to books, IIT engineer

बिहार के नवादा जिले का रहने वाला सुशांत कुमार सिन्हा खूब मेहनत कर रहा था। बिना रुके, बिना थके लगातार कई दिनों से पढ़ाई करते देख मैंने उसे समझाने का प्रयास किया कि वह थोड़ा आराम कर ले। लेकिन, सुशांत कहां मानने वाला था। वह किताबों से अपने-आप को दूर नहीं कर रहा था। एक दिन मैंने आखिर सुशांत से पूछा कि क्यों वह इतना सीरियस है। मैंने समझाते हुए कहा कि इतना मत सोचो। अगर तुम आईआईटी नहीं भी क्वालीफाय कर पाए तब एनआईटी तो आराम से पहुंच ही जाओगे।

इतना सुनने के बाद सुशांत की आंखों में आंसू आ गए। वह भावुक होकर बोला कि सर मुझे तो आईआईटी करना ही है। और अगर मैं आईआईटी क्वालीफाय कर गया तब मेरे पिताजी मुझसे और मेरे पूरे परिवार से मिलने घर आएंगे। सर पिताजी से मिले एक जमाना हो गया है। मेरी मां और छोटी बहन भी उनका इंतजार करती रहती है। मैंने पूछा कि आखिर हुआ क्या है? पिताजी कहां रहते हैं ? और क्यों नहीं आते हैं तुम लोगों से मिलने? तब सुशांत ने बताया कि उसके पिता अमरेन्द्र कुमार सिन्हा को दादाजी पढ़ने के लिए कहा करते थे।

दादाजी एक व्यापारी के पास मुंशी का काम करते थे और समझते थे कि उनके पास खेती के लिए जमीन नहीं है। इस स्तिथि में कायस्थ परिवार के लिए पढ़कर मुंशी बनने के सिवा और कोई रास्ता नहीं। अमरेन्द्र कुमार ने जहां तक हो सका सीमित साधनों में पढ़ने की पूरी कोशिश भी की। लेकिन, उन्हें कोई नौकरी नहीं मिली। शादी के बाद दो बच्चों की परवरिश की खातिर काम की तलाश में पटना आ गए थे। लेकिन, पटना में कोई स्थाई काम नहीं मिल रहा था। एक महीने कुछ काम मिलता फिर महीनों तक का इंतजार।

अब दाल रोटी पर भी आफत आ गई थी। आर्थिक तंगी की वजह से सुशांत की माताजी अपने दोनों बच्चों के साथ मायके बेगुसराय आ गईं थीं। सुशांत ने पढ़ाई शुरू कर दी थी। किताब-कॉपी के लिए भी पैसे नहीं होते थे। इस हालत में अमरेन्द्र कुमार किसी की मदद से गुजरात चले गए। वहां एक फैक्ट्री में गार्ड का काम मिल गया। कभी दिन में और कभी रात-रात भर जागकर अपनी ड्यूटी करते थे। आधे पेट खाना खाकर दो पैसे बचाकर परिवार को भेजते थे। पिता को अपने घर आए हुए दो साल से भी ज्यादा हो जाता था।

इधर सुशांत ने खुद को पढ़ाई में पूरी तरह झोंक दिया था। जिस मोहल्ले में वह रहता था वहां के कुछ बच्चे शाम के वक्त ट्यूशन पढ़ने जाते थे। सुशांत के मन में भी बहुत सारे प्रश्न उठते थे। उसका भी मन करता था कि ट्यूशन के लिए जाए और सवालों का वहां जवाब पा सके। लेकिन पैसों की कमी के चलते ऐसा हो न सका। बावजूद इसके सुशांत कभी हिम्मत नहीं हारा। सुशांत बहुत ही अच्छे अंकों के साथ दसवीं कक्षा पास कर चुका था। घर में खुशी का माहौल थी। यह संयोग की बात थी कि रिजल्ट के दिन उसके पिता घर पर ही थे।

सुशांत बताता है कि आगे की पढ़ाई के लिए अब उसके पास सिर्फ सुपर 30 ही एक मात्र विकल्प था। सुपर 30 का एंट्रेंस टेस्ट क्वालीफाय कर वह इसका सदस्य बन गया। मेहनत तो इतनी करता था कि सभी दंग रह जाते थे। वह स्वाभाव से भी मिलनसार था। उसके पूरे परिवार की इच्छा थी कि पिता एकबार फिर घर आएं, लेकिन पिता के पास छुट्टी नहीं थी। अब दो साल से भी ज्यादा हो गए थे और वे घर नहीं आए थे। लेकिन, उन्होंने कहा था कि अगर सुशांत को आईआईटी में दाखिला मिलेगा तब वह जरूर घर आएंगे। और इसी उम्मीद में सुशांत खूब पढ़ाई करता था।

आखिरकार वह दिन भी गया जब सुशांत आईआईटी प्रवेश-परीक्षा क्वालीफाय कर गया। उसकी खुशियों का ठिकाना नहीं था। आईआईटी क्वालीफाय करने की खुशी तो उसे थी ही, उससे ज्यादा इस बात की खुशी थी कि अब उसके पिता जरूर घर आएंगे। और फिर उसके पिता घर आए। सुशांत का एडमिशन आईआईटी बीएचयू में हो गया। अब तो संघर्ष का दौर खत्म भी हो गया है और सुशांत की नौकरी एक बहुत ही बड़ी कंपनी में लग गई है। सुशांत का अब एक और सपना है। उसके गांव में कोई स्कूल नहीं है। वह चाहता है कि कुछ दिनों के बाद वह अपने पैसों से गांव में एक स्कूल खुलवा दें।



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