फरकिया यानी फरक (फर्क) मतलब बाकियों से अलग। खगड़िया के बेलदौर विधानसभा का ये हिस्सा है। चौथम की 13 में से 4 पंचायतें फरकिया इलाके का हिस्सा हंै। अकबर के नवरत्नों में से एक टोडरमल को इस क्षेत्र के पैमाइश का जिम्मा मिला, लेकिन वे पैमाइश नहीं कर सके। वजह यहां का दलदल भरा जंगली इलाका। इसलिए उन्होंने इसे बाकी इलाके से फर्क कर दिया। लंबा अरसा बीत गया, लेकिन फरकिया आज भी वहीं खड़ा है। धूल और बाढ़ को छोड़ इस इलाके ने आज तक दुनिया देखी ही नहीं है। अगर गांव से बाहर आना हो तो नाव ही एकमात्र सहारा है। करीब 70 हजार की आबादी फरकिया दियारा में ही रहती है। नवादा घाट पर एक पुल का निर्माण पिछले एक वर्ष से हो रहा है। फरकिया की तरह ही खगड़िया के बाकी हिस्से के लोग भी खूब ठगे गए हैं। इलाके में मेगा फूड पार्क बना। ये सही तरीके से काम करे तो इलाका तरक्की की नई इबादत लिख दे। लेकिन ये हाथी का दांत ही साबित हुआ है। यही फरक है, और यही इस इलाके की बदकिस्मती... इसीलिए खगड़िया बाकी मामलों में भी फरकिया ही है। बेशर्म सियासत की विडंबना देखिए...फरकिया में भी जिंदाबाद के नारे लग रहे हैं। एक बार फिर से विकास के सपने दिखाए जा रहे हैं। इलाके के लोगों ने दगा को ही अब अपना किस्मत मान लिया है। चुनाव के वक्त मतदाता शतरंज का मोहरा भर ही तो होता है। इस बार कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी खगड़िया: 15 वर्षों से जदयू का कब्जा है। इस बार कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है। यही कारण है कि यहां जातीय समीकरण भी उलझ गया है। एनडीए प्रत्याशी पूनम देवी यादव, कांग्रेस के छत्रपति यादव, जाप से मनोहर यादव, लोजपा से रेणु कुमारी और निर्दलीय ई. धर्मेंद्र अपने वोटरों के दम पर मैदान में जमे हैं। यह सीट यादव बहुल है। बेलदौर: इस बार यहां जदयू के पन्ना लाल पटेल और कांग्रेस के डॉ. चंदन यादव के बीच सीधी टक्कर है। जाप से कुशवाहा उम्मीदवार नागेंद्र सिंह त्यागी और लोजपा के मिथिलेश निषाद भी इस मुकाबले में हैं। इन दोनों के पास भी अपनी जाति का वोट बैंक है। कुल मिलाकर गणित यहां बैठता है कि लोग जदयू और कांग्रेस को आमने-सामने देख रहे हैं। अलौली: 2015 में पहली बार राजद ने जीत का परचम लहराया था। इस बार उम्मीदवार बदल दिया है। रामवृक्ष सदा राजद से हैं। चूंकि यह स्व. पासवान का गृह क्षेत्र है, इसलिए इस सीट पर उनका दबदबा रहा है। पूर्व विधायक रामचंद्र सदा को लोजपा ने खड़ा किया है। जदयू की साधना देवी के चलते मुकाबला पूरी तरह से त्रिकोणात्मक हो गया है। परबत्ता: यह सीट भूमिहार व यादव बहुल है। जदयू के डॉ. संजीव व राजद से दिगंबर तिवारी चौरसिया आमने-सामने हैं। लोजपा से टिकट देकर आदित्य कुमार शौर्य भी मुकाबले में हैं। बावजूद जदयू और राजद के बीच सीधी टक्कर होगी क्योंकि राजद और जदयू का बेस वोट गोलबंद दिख रहा है। जातीय गोलबंदी भी स्पष्ट देखने को मिल रही है। इस सीट पर डॉ. संजीव के पिता आरएन सिंह लंबे समय से विधायक रहे हैं। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today चौथम इलाके की इस नदी के उस पार है फरकिया - VTM Breaking News

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फरकिया यानी फरक (फर्क) मतलब बाकियों से अलग। खगड़िया के बेलदौर विधानसभा का ये हिस्सा है। चौथम की 13 में से 4 पंचायतें फरकिया इलाके का हिस्सा हंै। अकबर के नवरत्नों में से एक टोडरमल को इस क्षेत्र के पैमाइश का जिम्मा मिला, लेकिन वे पैमाइश नहीं कर सके। वजह यहां का दलदल भरा जंगली इलाका। इसलिए उन्होंने इसे बाकी इलाके से फर्क कर दिया। लंबा अरसा बीत गया, लेकिन फरकिया आज भी वहीं खड़ा है। धूल और बाढ़ को छोड़ इस इलाके ने आज तक दुनिया देखी ही नहीं है। अगर गांव से बाहर आना हो तो नाव ही एकमात्र सहारा है। करीब 70 हजार की आबादी फरकिया दियारा में ही रहती है। नवादा घाट पर एक पुल का निर्माण पिछले एक वर्ष से हो रहा है। फरकिया की तरह ही खगड़िया के बाकी हिस्से के लोग भी खूब ठगे गए हैं। इलाके में मेगा फूड पार्क बना। ये सही तरीके से काम करे तो इलाका तरक्की की नई इबादत लिख दे। लेकिन ये हाथी का दांत ही साबित हुआ है। यही फरक है, और यही इस इलाके की बदकिस्मती... इसीलिए खगड़िया बाकी मामलों में भी फरकिया ही है। बेशर्म सियासत की विडंबना देखिए...फरकिया में भी जिंदाबाद के नारे लग रहे हैं। एक बार फिर से विकास के सपने दिखाए जा रहे हैं। इलाके के लोगों ने दगा को ही अब अपना किस्मत मान लिया है। चुनाव के वक्त मतदाता शतरंज का मोहरा भर ही तो होता है। इस बार कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी खगड़िया: 15 वर्षों से जदयू का कब्जा है। इस बार कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है। यही कारण है कि यहां जातीय समीकरण भी उलझ गया है। एनडीए प्रत्याशी पूनम देवी यादव, कांग्रेस के छत्रपति यादव, जाप से मनोहर यादव, लोजपा से रेणु कुमारी और निर्दलीय ई. धर्मेंद्र अपने वोटरों के दम पर मैदान में जमे हैं। यह सीट यादव बहुल है। बेलदौर: इस बार यहां जदयू के पन्ना लाल पटेल और कांग्रेस के डॉ. चंदन यादव के बीच सीधी टक्कर है। जाप से कुशवाहा उम्मीदवार नागेंद्र सिंह त्यागी और लोजपा के मिथिलेश निषाद भी इस मुकाबले में हैं। इन दोनों के पास भी अपनी जाति का वोट बैंक है। कुल मिलाकर गणित यहां बैठता है कि लोग जदयू और कांग्रेस को आमने-सामने देख रहे हैं। अलौली: 2015 में पहली बार राजद ने जीत का परचम लहराया था। इस बार उम्मीदवार बदल दिया है। रामवृक्ष सदा राजद से हैं। चूंकि यह स्व. पासवान का गृह क्षेत्र है, इसलिए इस सीट पर उनका दबदबा रहा है। पूर्व विधायक रामचंद्र सदा को लोजपा ने खड़ा किया है। जदयू की साधना देवी के चलते मुकाबला पूरी तरह से त्रिकोणात्मक हो गया है। परबत्ता: यह सीट भूमिहार व यादव बहुल है। जदयू के डॉ. संजीव व राजद से दिगंबर तिवारी चौरसिया आमने-सामने हैं। लोजपा से टिकट देकर आदित्य कुमार शौर्य भी मुकाबले में हैं। बावजूद जदयू और राजद के बीच सीधी टक्कर होगी क्योंकि राजद और जदयू का बेस वोट गोलबंद दिख रहा है। जातीय गोलबंदी भी स्पष्ट देखने को मिल रही है। इस सीट पर डॉ. संजीव के पिता आरएन सिंह लंबे समय से विधायक रहे हैं। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today चौथम इलाके की इस नदी के उस पार है फरकिया

फरकिया यानी फरक (फर्क) मतलब बाकियों से अलग। खगड़िया के बेलदौर विधानसभा का ये हिस्सा है। चौथम की 13 में से 4 पंचायतें फरकिया इलाके का हिस्सा हंै। अकबर के नवरत्नों में से एक टोडरमल को इस क्षेत्र के पैमाइश का जिम्मा मिला, लेकिन वे पैमाइश नहीं कर सके। वजह यहां का दलदल भरा जंगली इलाका।

इसलिए उन्होंने इसे बाकी इलाके से फर्क कर दिया। लंबा अरसा बीत गया, लेकिन फरकिया आज भी वहीं खड़ा है। धूल और बाढ़ को छोड़ इस इलाके ने आज तक दुनिया देखी ही नहीं है। अगर गांव से बाहर आना हो तो नाव ही एकमात्र सहारा है। करीब 70 हजार की आबादी फरकिया दियारा में ही रहती है। नवादा घाट पर एक पुल का निर्माण पिछले एक वर्ष से हो रहा है।
फरकिया की तरह ही खगड़िया के बाकी हिस्से के लोग भी खूब ठगे गए हैं। इलाके में मेगा फूड पार्क बना। ये सही तरीके से काम करे तो इलाका तरक्की की नई इबादत लिख दे। लेकिन ये हाथी का दांत ही साबित हुआ है। यही फरक है, और यही इस इलाके की बदकिस्मती... इसीलिए खगड़िया बाकी मामलों में भी फरकिया ही है।
बेशर्म सियासत की विडंबना देखिए...फरकिया में भी जिंदाबाद के नारे लग रहे हैं। एक बार फिर से विकास के सपने दिखाए जा रहे हैं। इलाके के लोगों ने दगा को ही अब अपना किस्मत मान लिया है। चुनाव के वक्त मतदाता शतरंज का मोहरा भर ही तो होता है।

इस बार कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी

  • खगड़िया: 15 वर्षों से जदयू का कब्जा है। इस बार कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है। यही कारण है कि यहां जातीय समीकरण भी उलझ गया है। एनडीए प्रत्याशी पूनम देवी यादव, कांग्रेस के छत्रपति यादव, जाप से मनोहर यादव, लोजपा से रेणु कुमारी और निर्दलीय ई. धर्मेंद्र अपने वोटरों के दम पर मैदान में जमे हैं। यह सीट यादव बहुल है।
  • बेलदौर: इस बार यहां जदयू के पन्ना लाल पटेल और कांग्रेस के डॉ. चंदन यादव के बीच सीधी टक्कर है। जाप से कुशवाहा उम्मीदवार नागेंद्र सिंह त्यागी और लोजपा के मिथिलेश निषाद भी इस मुकाबले में हैं। इन दोनों के पास भी अपनी जाति का वोट बैंक है। कुल मिलाकर गणित यहां बैठता है कि लोग जदयू और कांग्रेस को आमने-सामने देख रहे हैं।
  • अलौली: 2015 में पहली बार राजद ने जीत का परचम लहराया था। इस बार उम्मीदवार बदल दिया है। रामवृक्ष सदा राजद से हैं। चूंकि यह स्व. पासवान का गृह क्षेत्र है, इसलिए इस सीट पर उनका दबदबा रहा है। पूर्व विधायक रामचंद्र सदा को लोजपा ने खड़ा किया है। जदयू की साधना देवी के चलते मुकाबला पूरी तरह से त्रिकोणात्मक हो गया है।
  • परबत्ता: यह सीट भूमिहार व यादव बहुल है। जदयू के डॉ. संजीव व राजद से दिगंबर तिवारी चौरसिया आमने-सामने हैं। लोजपा से टिकट देकर आदित्य कुमार शौर्य भी मुकाबले में हैं। बावजूद जदयू और राजद के बीच सीधी टक्कर होगी क्योंकि राजद और जदयू का बेस वोट गोलबंद दिख रहा है। जातीय गोलबंदी भी स्पष्ट देखने को मिल रही है। इस सीट पर डॉ. संजीव के पिता आरएन सिंह लंबे समय से विधायक रहे हैं।


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