(राहुल पराशर) दानापुर नगर परिषद, खगौल नगर परिषद व दानापुर सैन्य छावनी परिषद को समेटे दानापुर विधानसभा सीट पर अनियंत्रित विकास ही सबसे बड़ी परेशानी है। शहर से सटे इस नगरीय क्षेत्र ने विकास के मामले में काफी प्रगति कर रहा है। कई मामलों यह राजधानी को भी मात दे रहा है, लेकिन यही इस क्षेत्र के लिए बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है। रूपसपुर नहर पार करते ही ऊंचे-ऊंचे अपार्टमेंट रीयल इस्टेट के क्षेत्र में हुए विकास की कहानी कहते हैं। अशोक राजपथ के दोनों ओर अब गोला रोड और खगौल स्टेशन के पीछे शिवाला तक अपार्टमेंट का लगातार निर्माण हो रहा है। खेतों में अपार्टमेंट बन रहे हैं, लेकिन इनसे निकलने वाले पानी के निस्तारण की योजना पर कोई ठोस कार्यक्रम नहीं बन पाया है। नियम के अनुसार भवन की ऊंचाई के आधार पर रोड की चौड़ाई होनी चाहिए, लेकिन 18 फीट चौड़ी सड़क पर पांच से छह मंजिला इमारत यहां बने हुए हैं। सितंबर 2019 में हुई भारी बारिश के बाद इस इलाके में भी लोगों को लंबे समय तक जलजमाव का सामना करना पड़ा। इसके बाद इस समस्या पर लोगों का ध्यान गया। दानापुर का पूरा क्षेत्र शहरी होने के बावजूद यहां सुविधाओं का अभाव साफ दिखता है। संकरी सड़कों के चौड़ीकरण की मांग होती रही हैं, लेकिन उस पर कोई काम नहीं हुआ है। सैन्य छावनी की तरफ से भी सड़कों को बंद किए जाने को लेकर लगातार प्रदर्शन होता रहा है। बिजली कटौती का संकट भी बड़ा मामला है। दियारा क्षेत्र से लोगों के संपर्क का साधन बारिश के बाद नाव पर सिमट जाता है। यह इलाका अभी भी शहरी सुविधाओं से लैस नहीं हो पाया है। यहां के लोगों की सबसे बड़ी समस्या बिजली, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य व पक्का पुल की है। इस विधानसभा सीट में 13 पंचायत भी हैं। वहां पर भी मूल समस्याएं एक जैसी हैं। राजग-महागठबंधन में सीधे मुकाबले के आसार, रीतलाल बिगाड़ सकते हैं खेल इस बार आमने-सामने का मुकाबला होने के आसार हैं। एनडीए की ओर से यह सीट भाजपा के पाले में है। वहीं, महागठबंधन की ओर से राजद अपने उम्मीदवार उतारेगा। भाजपा ने एक बार फिर वर्तमान विधायक आशा सिन्हा पर दांव लगाया है। राजद एमएलसी रीतलाल यादव के भी चुनावी मैदान में उतरने की याेजना है। राजद नेता राजकिशोर यादव के निधन के बाद पुत्र प्रेम किशोर टिकट की आस में हैं। वहीं, राजद में आई चंद्रिका राय की भतीजी करिश्मा राय भी क्षेत्र में घूम रही हैं। माना जा रहा है कि टिकट न मिलने की स्थिति में रीतलाल यादव निर्दलीय ताल ठोक सकते हैं। दो बार लालू, चार बार आशा जीतीं पर सीताराम केसरी को मिली थी हार वर्ष 1957 से 2015 तक 17 बार चुनाव हुए। 5-5 बार भाजपा व कांग्रेस के प्रत्याशी जीते। दो-दो बार राजद व जनता दल, एक-एक बार निर्दलीय, एसएसपी व एससीओ के उम्मीदवार चुनकर विधायक बने। सबसे अधिक चार बार 2005 के दोनों चुनाव, 2010 व 2015 में भाजपा प्रत्याशी और वर्तमान विधायक आशा देवी को जीत मिली। वहीं, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद भी दो बार 1995 व 2000 में जीते। दानापुर के ही रहने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता सीताराम केसरी यहां से एक बार 1962 में लड़े, पर उन्हें हार मिली। मनेर विधानसभा से 1962 में कांग्रेस से विधायक चुने गए बुद्धदेव सिंह कांग्रेस के टिकट पर दानापुर से 1969, 1972 व 1980 में विधायक बने। पालीगंज से 5 बार एमएलए बने रामलखन सिंह यादव भी कांग्रेस से दानापुर से एक बार 1977 में चुनाव जीते। वैश्य मतदाता ही होते हैं निर्णायक यादव वोटरों की संख्या एक लाख है। दूसरे स्थान पर वैश्य जाति के वोटरों की संख्या करीब 35 हजार है। वहीं, मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 21 हजार है। माय समीकरण को इस सीट पर साधने की कोशिश की गई, लेकिन कई बार यह काम नहीं कर पाया। बड़ा कारण यादव वोटरों में कृष्णौत व मजरौठ का बंटवारा है। करीब 16 हजार राजपूत, साढ़े 16 हजार भूमिहार, 18 हजार कोयरी वोट हैं। जदयू अलग तो भाजपा की जीत घटी इस सीट से पिछले चार चुनाव से जीत दर्ज करने वाली आशा देवी को 2015 के विस चुनाव में अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा। जदयू के भाजपा से अलग होकर मैदान में उतरने का खामियाजा उन्हें जीत के अंतर में कमी के रूप में उठाना पड़ा। 2010 के चुनाव में भाजपा को 59,425 वोट मिले थे। निर्दलीय रीतलाल राय को 41,506 वोट मिले थे। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today दानापुर में खेतों में अपार्टमेंट बनाए जा रहे हैं, पर अभी भी यहां जलनिकासी की व्यवस्था नहीं है। - VTM Breaking News

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Tuesday, October 13, 2020

(राहुल पराशर) दानापुर नगर परिषद, खगौल नगर परिषद व दानापुर सैन्य छावनी परिषद को समेटे दानापुर विधानसभा सीट पर अनियंत्रित विकास ही सबसे बड़ी परेशानी है। शहर से सटे इस नगरीय क्षेत्र ने विकास के मामले में काफी प्रगति कर रहा है। कई मामलों यह राजधानी को भी मात दे रहा है, लेकिन यही इस क्षेत्र के लिए बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है। रूपसपुर नहर पार करते ही ऊंचे-ऊंचे अपार्टमेंट रीयल इस्टेट के क्षेत्र में हुए विकास की कहानी कहते हैं। अशोक राजपथ के दोनों ओर अब गोला रोड और खगौल स्टेशन के पीछे शिवाला तक अपार्टमेंट का लगातार निर्माण हो रहा है। खेतों में अपार्टमेंट बन रहे हैं, लेकिन इनसे निकलने वाले पानी के निस्तारण की योजना पर कोई ठोस कार्यक्रम नहीं बन पाया है। नियम के अनुसार भवन की ऊंचाई के आधार पर रोड की चौड़ाई होनी चाहिए, लेकिन 18 फीट चौड़ी सड़क पर पांच से छह मंजिला इमारत यहां बने हुए हैं। सितंबर 2019 में हुई भारी बारिश के बाद इस इलाके में भी लोगों को लंबे समय तक जलजमाव का सामना करना पड़ा। इसके बाद इस समस्या पर लोगों का ध्यान गया। दानापुर का पूरा क्षेत्र शहरी होने के बावजूद यहां सुविधाओं का अभाव साफ दिखता है। संकरी सड़कों के चौड़ीकरण की मांग होती रही हैं, लेकिन उस पर कोई काम नहीं हुआ है। सैन्य छावनी की तरफ से भी सड़कों को बंद किए जाने को लेकर लगातार प्रदर्शन होता रहा है। बिजली कटौती का संकट भी बड़ा मामला है। दियारा क्षेत्र से लोगों के संपर्क का साधन बारिश के बाद नाव पर सिमट जाता है। यह इलाका अभी भी शहरी सुविधाओं से लैस नहीं हो पाया है। यहां के लोगों की सबसे बड़ी समस्या बिजली, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य व पक्का पुल की है। इस विधानसभा सीट में 13 पंचायत भी हैं। वहां पर भी मूल समस्याएं एक जैसी हैं। राजग-महागठबंधन में सीधे मुकाबले के आसार, रीतलाल बिगाड़ सकते हैं खेल इस बार आमने-सामने का मुकाबला होने के आसार हैं। एनडीए की ओर से यह सीट भाजपा के पाले में है। वहीं, महागठबंधन की ओर से राजद अपने उम्मीदवार उतारेगा। भाजपा ने एक बार फिर वर्तमान विधायक आशा सिन्हा पर दांव लगाया है। राजद एमएलसी रीतलाल यादव के भी चुनावी मैदान में उतरने की याेजना है। राजद नेता राजकिशोर यादव के निधन के बाद पुत्र प्रेम किशोर टिकट की आस में हैं। वहीं, राजद में आई चंद्रिका राय की भतीजी करिश्मा राय भी क्षेत्र में घूम रही हैं। माना जा रहा है कि टिकट न मिलने की स्थिति में रीतलाल यादव निर्दलीय ताल ठोक सकते हैं। दो बार लालू, चार बार आशा जीतीं पर सीताराम केसरी को मिली थी हार वर्ष 1957 से 2015 तक 17 बार चुनाव हुए। 5-5 बार भाजपा व कांग्रेस के प्रत्याशी जीते। दो-दो बार राजद व जनता दल, एक-एक बार निर्दलीय, एसएसपी व एससीओ के उम्मीदवार चुनकर विधायक बने। सबसे अधिक चार बार 2005 के दोनों चुनाव, 2010 व 2015 में भाजपा प्रत्याशी और वर्तमान विधायक आशा देवी को जीत मिली। वहीं, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद भी दो बार 1995 व 2000 में जीते। दानापुर के ही रहने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता सीताराम केसरी यहां से एक बार 1962 में लड़े, पर उन्हें हार मिली। मनेर विधानसभा से 1962 में कांग्रेस से विधायक चुने गए बुद्धदेव सिंह कांग्रेस के टिकट पर दानापुर से 1969, 1972 व 1980 में विधायक बने। पालीगंज से 5 बार एमएलए बने रामलखन सिंह यादव भी कांग्रेस से दानापुर से एक बार 1977 में चुनाव जीते। वैश्य मतदाता ही होते हैं निर्णायक यादव वोटरों की संख्या एक लाख है। दूसरे स्थान पर वैश्य जाति के वोटरों की संख्या करीब 35 हजार है। वहीं, मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 21 हजार है। माय समीकरण को इस सीट पर साधने की कोशिश की गई, लेकिन कई बार यह काम नहीं कर पाया। बड़ा कारण यादव वोटरों में कृष्णौत व मजरौठ का बंटवारा है। करीब 16 हजार राजपूत, साढ़े 16 हजार भूमिहार, 18 हजार कोयरी वोट हैं। जदयू अलग तो भाजपा की जीत घटी इस सीट से पिछले चार चुनाव से जीत दर्ज करने वाली आशा देवी को 2015 के विस चुनाव में अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा। जदयू के भाजपा से अलग होकर मैदान में उतरने का खामियाजा उन्हें जीत के अंतर में कमी के रूप में उठाना पड़ा। 2010 के चुनाव में भाजपा को 59,425 वोट मिले थे। निर्दलीय रीतलाल राय को 41,506 वोट मिले थे। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today दानापुर में खेतों में अपार्टमेंट बनाए जा रहे हैं, पर अभी भी यहां जलनिकासी की व्यवस्था नहीं है।

(राहुल पराशर) दानापुर नगर परिषद, खगौल नगर परिषद व दानापुर सैन्य छावनी परिषद को समेटे दानापुर विधानसभा सीट पर अनियंत्रित विकास ही सबसे बड़ी परेशानी है। शहर से सटे इस नगरीय क्षेत्र ने विकास के मामले में काफी प्रगति कर रहा है। कई मामलों यह राजधानी को भी मात दे रहा है, लेकिन यही इस क्षेत्र के लिए बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है।

रूपसपुर नहर पार करते ही ऊंचे-ऊंचे अपार्टमेंट रीयल इस्टेट के क्षेत्र में हुए विकास की कहानी कहते हैं। अशोक राजपथ के दोनों ओर अब गोला रोड और खगौल स्टेशन के पीछे शिवाला तक अपार्टमेंट का लगातार निर्माण हो रहा है। खेतों में अपार्टमेंट बन रहे हैं, लेकिन इनसे निकलने वाले पानी के निस्तारण की योजना पर कोई ठोस कार्यक्रम नहीं बन पाया है।

नियम के अनुसार भवन की ऊंचाई के आधार पर रोड की चौड़ाई होनी चाहिए, लेकिन 18 फीट चौड़ी सड़क पर पांच से छह मंजिला इमारत यहां बने हुए हैं। सितंबर 2019 में हुई भारी बारिश के बाद इस इलाके में भी लोगों को लंबे समय तक जलजमाव का सामना करना पड़ा। इसके बाद इस समस्या पर लोगों का ध्यान गया।

दानापुर का पूरा क्षेत्र शहरी होने के बावजूद यहां सुविधाओं का अभाव साफ दिखता है। संकरी सड़कों के चौड़ीकरण की मांग होती रही हैं, लेकिन उस पर कोई काम नहीं हुआ है। सैन्य छावनी की तरफ से भी सड़कों को बंद किए जाने को लेकर लगातार प्रदर्शन होता रहा है।

बिजली कटौती का संकट भी बड़ा मामला है। दियारा क्षेत्र से लोगों के संपर्क का साधन बारिश के बाद नाव पर सिमट जाता है। यह इलाका अभी भी शहरी सुविधाओं से लैस नहीं हो पाया है। यहां के लोगों की सबसे बड़ी समस्या बिजली, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य व पक्का पुल की है। इस विधानसभा सीट में 13 पंचायत भी हैं। वहां पर भी मूल समस्याएं एक जैसी हैं।

राजग-महागठबंधन में सीधे मुकाबले के आसार, रीतलाल बिगाड़ सकते हैं खेल

इस बार आमने-सामने का मुकाबला होने के आसार हैं। एनडीए की ओर से यह सीट भाजपा के पाले में है। वहीं, महागठबंधन की ओर से राजद अपने उम्मीदवार उतारेगा। भाजपा ने एक बार फिर वर्तमान विधायक आशा सिन्हा पर दांव लगाया है। राजद एमएलसी रीतलाल यादव के भी चुनावी मैदान में उतरने की याेजना है।

राजद नेता राजकिशोर यादव के निधन के बाद पुत्र प्रेम किशोर टिकट की आस में हैं। वहीं, राजद में आई चंद्रिका राय की भतीजी करिश्मा राय भी क्षेत्र में घूम रही हैं। माना जा रहा है कि टिकट न मिलने की स्थिति में रीतलाल यादव निर्दलीय ताल ठोक सकते हैं।

दो बार लालू, चार बार आशा जीतीं पर सीताराम केसरी को मिली थी हार
वर्ष 1957 से 2015 तक 17 बार चुनाव हुए। 5-5 बार भाजपा व कांग्रेस के प्रत्याशी जीते। दो-दो बार राजद व जनता दल, एक-एक बार निर्दलीय, एसएसपी व एससीओ के उम्मीदवार चुनकर विधायक बने। सबसे अधिक चार बार 2005 के दोनों चुनाव, 2010 व 2015 में भाजपा प्रत्याशी और वर्तमान विधायक आशा देवी को जीत मिली। वहीं, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद भी दो बार 1995 व 2000 में जीते। दानापुर के ही रहने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता सीताराम केसरी यहां से एक बार 1962 में लड़े, पर उन्हें हार मिली।

मनेर विधानसभा से 1962 में कांग्रेस से विधायक चुने गए बुद्धदेव सिंह कांग्रेस के टिकट पर दानापुर से 1969, 1972 व 1980 में विधायक बने। पालीगंज से 5 बार एमएलए बने रामलखन सिंह यादव भी कांग्रेस से दानापुर से एक बार 1977 में चुनाव जीते।

वैश्य मतदाता ही होते हैं निर्णायक
यादव वोटरों की संख्या एक लाख है। दूसरे स्थान पर वैश्य जाति के वोटरों की संख्या करीब 35 हजार है। वहीं, मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 21 हजार है। माय समीकरण को इस सीट पर साधने की कोशिश की गई, लेकिन कई बार यह काम नहीं कर पाया। बड़ा कारण यादव वोटरों में कृष्णौत व मजरौठ का बंटवारा है। करीब 16 हजार राजपूत, साढ़े 16 हजार भूमिहार, 18 हजार कोयरी वोट हैं।

जदयू अलग तो भाजपा की जीत घटी
इस सीट से पिछले चार चुनाव से जीत दर्ज करने वाली आशा देवी को 2015 के विस चुनाव में अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा। जदयू के भाजपा से अलग होकर मैदान में उतरने का खामियाजा उन्हें जीत के अंतर में कमी के रूप में उठाना पड़ा। 2010 के चुनाव में भाजपा को 59,425 वोट मिले थे। निर्दलीय रीतलाल राय को 41,506 वोट मिले थे।



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दानापुर में खेतों में अपार्टमेंट बनाए जा रहे हैं, पर अभी भी यहां जलनिकासी की व्यवस्था नहीं है।


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