मेरी उम्र उस समय कुछ 17 साल रही होगी। मेरा एक दोस्त था, जिसे उसके 18वें जन्मदिन पर पिताजी ने बाइक गिफ्ट दी। एक दिन वो मेरे घर आया और मुझसे कहने लगा चलो घूमकर आते हैं। थोड़ी देर में हम एक पेट्रोल पंप पर पहुंचे। वहां बहुत लंबी लाइन लगी थी। मैंने एक चीज नोट की कि लोग पेट्रोल तो भरवा रहे थे, लेकिन पैसे कोई नहीं दे रहा था। मेरे दोस्त ने भी अपनी गाड़ी में पेट्रोल भरवाया और पैसे नहीं दिए। मैंने जब उससे पूछा तो उसने कहा कि नेताजी की रैली में जा रहे हैं। सब इंतजाम उनकी तरफ से है। हो सकता है कि ऐसा कभी न कभी आपके साथ भी हुआ है। लेकिन, बिहार में चुनाव की तारीखें आने के बाद अब किराए से बाइक वालों की भीड़ जुटाने का बिजनेस शुरू हो गया है। इसके लिए बाकायदा ठेकेदार हैं, जो नेताओं के लिए भीड़ इकट्ठी करती है और उसके बदले में इन्हें पैसा मिलता है। हालांकि, कोरोना की वजह से इस बार बड़ी-बड़ी रैलियों और भीड़ इकट्ठा करने पर रोक जरूर है, उसके बावजूद इसे चलाने वाले सक्रिय हो गए हैं। भास्कर ने जब किराए की भीड़ की पड़ताल के लिए ठेकेदारों का स्टिंग ऑपरेशन किया तो चौंकाने वाली बातें सामने आई। पता चला कि महज 300 रुपए में बाइकर्स मिल जाते हैं, जो नेताजी के लिए भीड़ बढ़ाने का काम करते हैं। ये भीड़ नेताओं की जयकार भी करती है और उनकी पार्टी का झंडा भी उठाती है। थोड़ी देर बाद यही भीड़ किसी दूसरी पार्टी के नेता के जयकार करने लगती है। ऐसे हुआ किराए की भीड़ लाने वाले ठेकेदारों का खुलासा सबसे पहले नेताओं के लिए किराए की भीड़ जमा कराने वाले ठेकेदारों की पहचान की, उनसे बात की और खुद राजनीतिक पार्टी के लिए इलेक्शन मैनेजमेंट का काम करने की बात कहकर भरोसा बनाया। भरोसा होते ही ठेकेदार ने एक-एक करके वो सारी बातें बता दीं, जो नेताओं के साथ होती थी। बातचीत में पता चला कि ये किराए की भीड़ एक तरह से टैरिफ पर काम करती है। ठेकेदार पहले नेताओं से किलोमीटर के हिसाब से डील करते हैं। ये भीड़ नेताओं के साथ टैरिफ वाले समय तक जिंदाबाद करती है। नीचें पढ़े भास्कर रिपोर्टर और ठेकेदार के बीच बातचीत... रिपोर्टर - हैलो, नमस्ते भैया...मैं...बोल रहा हूं। ठेकेदार - बोलो। रिपोर्टर - बात हुई थी आपसे...बोरिंग रोड पर मुलाकात हुई थी। ठेकेदार – हां...हां...बताओ। रिपोर्टर - भैया मैं रहने वाला तो बाहर का हूं, यहां इवेंट मैनेजमेंट का काम कर रहा हूं। ठेकेदार - हां बोलो क्या? रिपोर्टर - कुछ पार्टियों की डिमांड आई थी रैली के लिए बाइक के साथ लड़कों की, आपकी मदद मिल जाएगी क्या? ठेकेदार - ऐसा है न…तुम एक आध घंटे में हमको कॉल करोगे। रिपोर्टर - भैया अभी....नेताजी को बताना था। ठेकेदार - हां हो, ओह रिपोर्टर - अच्छा ये बता दीजिए कितना लगेगा? ठेकेदार - पर बाइक 300 रुपया देना होगा। रिपोर्टर - तेल देना होगा अलग से? ठेकेदार - नहीं…तेल के साथ, कहां से कहां जाना है अगर लॉन्ग डिस्टेंस हुआ तो पर बाइक 500...कम दूरी हुई तो 300 देना होगा। रिपोर्टर - कितने किलो मीटर का 500 और कितने किलो मीटर का 300 देना होगा। ठेकेदार - 10 किलोमीटर जाना है तो 300...अगर 15 से 20 किलोमीटर जाना हो तो 500 देना होगा। रिपोर्टर - कितना मैक्सिमम हो सकता है, कितना लोग मिल सकते हैं? ठेकेदार - 100 बाइक का हो जाएगा। रिपोर्टर - कागज पत्र तो होगा उन सभी का, हालांकि कागज पत्र कौन चेक करेगा। ठेकेदार - रैली में कागज पत्र कौन चेक करता है, पहले पूछ लो बात करके कंफर्म कर लो। रिपोर्टर - भैया वो तो ज्यादा बता रहे थे, उन्हें ढाई से तीन सौ तक चाहिए था। ठेकेदार - पहले पूछो तो सही पैसा देंगे या नहीं देंगे। रिपोर्टर - पैसा तो देंगे, पैसा तो एडवांस देने की बात हुई है। ठेकेदार - हां तो पैसा एडवांस दिला दो, फिर हम करेंगे आगे। नहीं दिए तो नहीं हो पाएगा। रिपोर्टर - भैया ढाई तीन सौ की व्यवस्था हो जाएगी न। ठेकेदार - ढाई तीन सौ नहीं कह सकते बाबू, हम डेढ़ सौ मिनिमम...झूठ नहीं बोलेंगे डेढ़ सौ तक का कर देंगे। रिपोर्टर - इधर कोई ऑर्डर मिला है क्या? ठेकेदार - नहीं अभी तो ऑर्डर कोई नहीं मिला है, पहले पूछ लेना रैली निकल रहा है, आचार संहिता लागू हो गई है। रिपोर्टर - वो दूसरे तरह की रैली निकाल रहा है। ठेकेदार - हां पहले पूछ लेना, फिर बताना। रिपोर्टर - ठीक है भैया, व्यवस्था हो जाएगी न । ठेकेदार - हां हां हो जाएगी। भीड़ को नारे लगाने होते हैं, एक गाइड भी होता है किराए की भीड़ के कई काम होते हैं। सबसे पहला काम तो यही होता है कि इन्हें नेताजी की गाड़ी के पीछे अपनी बाइक दौड़ानी होती है। नेताजी के नारे लगाने होते हैं। नारे क्या लगेंगे, ये नेताजी और ठेकेदार तय करते हैं। भीड़ को गाइड करने वाला भी होता है, जो ये ध्यान रखता है कि बाइकर्स झंडे सही से उठा रहे हैं या नहीं। ज्यादातर बाइकर्स वो होते हैं, जो बिगड़ैल और आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं भीड़ बढ़ाने का काम करने वाले इन बाइकर्स में ज्यादातर वो लड़के होते हैं, जो बिगड़ैल और आपराधिक प्रवृत्ति वाले होते हैं। लूट, चोरी जैसी वारदातों में बाइकर्स का नाम आने के बाद करीब तीन साल पहले पटना के उस समय के एसएसपी मनु महाराज ने इन गैंग्स की पड़ताल की। पटना में ही करीब 50 से ज्यादा गैंग के 150 से ज्यादा लड़कों के नाम सामने आए थे, जो लूट, चोरी समेत कई वारदातों में शामिल थे। कार्रवाई हुई थी, लेकिन गैंग पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ। समय बदला है, पहले भीड़ आती थी, अब बुलाई जाती है एक्सपर्ट सुनील सिन्हा बताते हैं कि पहले नेताओं को सुनने के लिए भीड़ अपने साधन से या ट्रैक्टर-ट्रॉली से या बसों से पहुंच जाती थी। लेकिन, अब ट्रेंड बदल रहा है। अब भीड़ जुटाने के लिए नेताओं को मशक्कत करनी पड़ती है। वहीं, बिहार की राजनीति में लंबे अरसे से नजर रखने वाले धनवंत सिंह राठौर कहते हैं कि पहले नेताओं के पास मुद्दे होते थे, लोग उनकी बात सुनने के लिए खुद आते थे। लेकिन, अब भीड़ में शामिल किसी व्यक्ति से पूछ लिया जाए कि वो किसकी रैली या जुलूस में आया है, तो शायद वो इसका जवाब भी न दे पाए। डॉ. आशुतोष बताते हैं, बिहार में ऐसे कई बड़े नेता हुए हैं, जिन्हें सुनने के लिए गांधी मैदान भर जाता था, लेकिन अब ऐसा ट्रेंड आया है कि नेताओं को अपनी दमदारी दिखाने के लिए किराए की भीड़ लानी पड़ती है। वो कहते हैं पहले भीड़ आती थी, अब बुलानी पड़ती है। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today Bihar Election 2020; Dainik Bhaskar Sting Update | Political Party Pay Money to Fake Crowd For Bihar Vidhan Sabha Chunav Rally - VTM Breaking News

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Sunday, October 04, 2020

मेरी उम्र उस समय कुछ 17 साल रही होगी। मेरा एक दोस्त था, जिसे उसके 18वें जन्मदिन पर पिताजी ने बाइक गिफ्ट दी। एक दिन वो मेरे घर आया और मुझसे कहने लगा चलो घूमकर आते हैं। थोड़ी देर में हम एक पेट्रोल पंप पर पहुंचे। वहां बहुत लंबी लाइन लगी थी। मैंने एक चीज नोट की कि लोग पेट्रोल तो भरवा रहे थे, लेकिन पैसे कोई नहीं दे रहा था। मेरे दोस्त ने भी अपनी गाड़ी में पेट्रोल भरवाया और पैसे नहीं दिए। मैंने जब उससे पूछा तो उसने कहा कि नेताजी की रैली में जा रहे हैं। सब इंतजाम उनकी तरफ से है। हो सकता है कि ऐसा कभी न कभी आपके साथ भी हुआ है। लेकिन, बिहार में चुनाव की तारीखें आने के बाद अब किराए से बाइक वालों की भीड़ जुटाने का बिजनेस शुरू हो गया है। इसके लिए बाकायदा ठेकेदार हैं, जो नेताओं के लिए भीड़ इकट्ठी करती है और उसके बदले में इन्हें पैसा मिलता है। हालांकि, कोरोना की वजह से इस बार बड़ी-बड़ी रैलियों और भीड़ इकट्ठा करने पर रोक जरूर है, उसके बावजूद इसे चलाने वाले सक्रिय हो गए हैं। भास्कर ने जब किराए की भीड़ की पड़ताल के लिए ठेकेदारों का स्टिंग ऑपरेशन किया तो चौंकाने वाली बातें सामने आई। पता चला कि महज 300 रुपए में बाइकर्स मिल जाते हैं, जो नेताजी के लिए भीड़ बढ़ाने का काम करते हैं। ये भीड़ नेताओं की जयकार भी करती है और उनकी पार्टी का झंडा भी उठाती है। थोड़ी देर बाद यही भीड़ किसी दूसरी पार्टी के नेता के जयकार करने लगती है। ऐसे हुआ किराए की भीड़ लाने वाले ठेकेदारों का खुलासा सबसे पहले नेताओं के लिए किराए की भीड़ जमा कराने वाले ठेकेदारों की पहचान की, उनसे बात की और खुद राजनीतिक पार्टी के लिए इलेक्शन मैनेजमेंट का काम करने की बात कहकर भरोसा बनाया। भरोसा होते ही ठेकेदार ने एक-एक करके वो सारी बातें बता दीं, जो नेताओं के साथ होती थी। बातचीत में पता चला कि ये किराए की भीड़ एक तरह से टैरिफ पर काम करती है। ठेकेदार पहले नेताओं से किलोमीटर के हिसाब से डील करते हैं। ये भीड़ नेताओं के साथ टैरिफ वाले समय तक जिंदाबाद करती है। नीचें पढ़े भास्कर रिपोर्टर और ठेकेदार के बीच बातचीत... रिपोर्टर - हैलो, नमस्ते भैया...मैं...बोल रहा हूं। ठेकेदार - बोलो। रिपोर्टर - बात हुई थी आपसे...बोरिंग रोड पर मुलाकात हुई थी। ठेकेदार – हां...हां...बताओ। रिपोर्टर - भैया मैं रहने वाला तो बाहर का हूं, यहां इवेंट मैनेजमेंट का काम कर रहा हूं। ठेकेदार - हां बोलो क्या? रिपोर्टर - कुछ पार्टियों की डिमांड आई थी रैली के लिए बाइक के साथ लड़कों की, आपकी मदद मिल जाएगी क्या? ठेकेदार - ऐसा है न…तुम एक आध घंटे में हमको कॉल करोगे। रिपोर्टर - भैया अभी....नेताजी को बताना था। ठेकेदार - हां हो, ओह रिपोर्टर - अच्छा ये बता दीजिए कितना लगेगा? ठेकेदार - पर बाइक 300 रुपया देना होगा। रिपोर्टर - तेल देना होगा अलग से? ठेकेदार - नहीं…तेल के साथ, कहां से कहां जाना है अगर लॉन्ग डिस्टेंस हुआ तो पर बाइक 500...कम दूरी हुई तो 300 देना होगा। रिपोर्टर - कितने किलो मीटर का 500 और कितने किलो मीटर का 300 देना होगा। ठेकेदार - 10 किलोमीटर जाना है तो 300...अगर 15 से 20 किलोमीटर जाना हो तो 500 देना होगा। रिपोर्टर - कितना मैक्सिमम हो सकता है, कितना लोग मिल सकते हैं? ठेकेदार - 100 बाइक का हो जाएगा। रिपोर्टर - कागज पत्र तो होगा उन सभी का, हालांकि कागज पत्र कौन चेक करेगा। ठेकेदार - रैली में कागज पत्र कौन चेक करता है, पहले पूछ लो बात करके कंफर्म कर लो। रिपोर्टर - भैया वो तो ज्यादा बता रहे थे, उन्हें ढाई से तीन सौ तक चाहिए था। ठेकेदार - पहले पूछो तो सही पैसा देंगे या नहीं देंगे। रिपोर्टर - पैसा तो देंगे, पैसा तो एडवांस देने की बात हुई है। ठेकेदार - हां तो पैसा एडवांस दिला दो, फिर हम करेंगे आगे। नहीं दिए तो नहीं हो पाएगा। रिपोर्टर - भैया ढाई तीन सौ की व्यवस्था हो जाएगी न। ठेकेदार - ढाई तीन सौ नहीं कह सकते बाबू, हम डेढ़ सौ मिनिमम...झूठ नहीं बोलेंगे डेढ़ सौ तक का कर देंगे। रिपोर्टर - इधर कोई ऑर्डर मिला है क्या? ठेकेदार - नहीं अभी तो ऑर्डर कोई नहीं मिला है, पहले पूछ लेना रैली निकल रहा है, आचार संहिता लागू हो गई है। रिपोर्टर - वो दूसरे तरह की रैली निकाल रहा है। ठेकेदार - हां पहले पूछ लेना, फिर बताना। रिपोर्टर - ठीक है भैया, व्यवस्था हो जाएगी न । ठेकेदार - हां हां हो जाएगी। भीड़ को नारे लगाने होते हैं, एक गाइड भी होता है किराए की भीड़ के कई काम होते हैं। सबसे पहला काम तो यही होता है कि इन्हें नेताजी की गाड़ी के पीछे अपनी बाइक दौड़ानी होती है। नेताजी के नारे लगाने होते हैं। नारे क्या लगेंगे, ये नेताजी और ठेकेदार तय करते हैं। भीड़ को गाइड करने वाला भी होता है, जो ये ध्यान रखता है कि बाइकर्स झंडे सही से उठा रहे हैं या नहीं। ज्यादातर बाइकर्स वो होते हैं, जो बिगड़ैल और आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं भीड़ बढ़ाने का काम करने वाले इन बाइकर्स में ज्यादातर वो लड़के होते हैं, जो बिगड़ैल और आपराधिक प्रवृत्ति वाले होते हैं। लूट, चोरी जैसी वारदातों में बाइकर्स का नाम आने के बाद करीब तीन साल पहले पटना के उस समय के एसएसपी मनु महाराज ने इन गैंग्स की पड़ताल की। पटना में ही करीब 50 से ज्यादा गैंग के 150 से ज्यादा लड़कों के नाम सामने आए थे, जो लूट, चोरी समेत कई वारदातों में शामिल थे। कार्रवाई हुई थी, लेकिन गैंग पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ। समय बदला है, पहले भीड़ आती थी, अब बुलाई जाती है एक्सपर्ट सुनील सिन्हा बताते हैं कि पहले नेताओं को सुनने के लिए भीड़ अपने साधन से या ट्रैक्टर-ट्रॉली से या बसों से पहुंच जाती थी। लेकिन, अब ट्रेंड बदल रहा है। अब भीड़ जुटाने के लिए नेताओं को मशक्कत करनी पड़ती है। वहीं, बिहार की राजनीति में लंबे अरसे से नजर रखने वाले धनवंत सिंह राठौर कहते हैं कि पहले नेताओं के पास मुद्दे होते थे, लोग उनकी बात सुनने के लिए खुद आते थे। लेकिन, अब भीड़ में शामिल किसी व्यक्ति से पूछ लिया जाए कि वो किसकी रैली या जुलूस में आया है, तो शायद वो इसका जवाब भी न दे पाए। डॉ. आशुतोष बताते हैं, बिहार में ऐसे कई बड़े नेता हुए हैं, जिन्हें सुनने के लिए गांधी मैदान भर जाता था, लेकिन अब ऐसा ट्रेंड आया है कि नेताओं को अपनी दमदारी दिखाने के लिए किराए की भीड़ लानी पड़ती है। वो कहते हैं पहले भीड़ आती थी, अब बुलानी पड़ती है। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today Bihar Election 2020; Dainik Bhaskar Sting Update | Political Party Pay Money to Fake Crowd For Bihar Vidhan Sabha Chunav Rally

मेरी उम्र उस समय कुछ 17 साल रही होगी। मेरा एक दोस्त था, जिसे उसके 18वें जन्मदिन पर पिताजी ने बाइक गिफ्ट दी। एक दिन वो मेरे घर आया और मुझसे कहने लगा चलो घूमकर आते हैं। थोड़ी देर में हम एक पेट्रोल पंप पर पहुंचे। वहां बहुत लंबी लाइन लगी थी।

मैंने एक चीज नोट की कि लोग पेट्रोल तो भरवा रहे थे, लेकिन पैसे कोई नहीं दे रहा था। मेरे दोस्त ने भी अपनी गाड़ी में पेट्रोल भरवाया और पैसे नहीं दिए। मैंने जब उससे पूछा तो उसने कहा कि नेताजी की रैली में जा रहे हैं। सब इंतजाम उनकी तरफ से है।

हो सकता है कि ऐसा कभी न कभी आपके साथ भी हुआ है। लेकिन, बिहार में चुनाव की तारीखें आने के बाद अब किराए से बाइक वालों की भीड़ जुटाने का बिजनेस शुरू हो गया है। इसके लिए बाकायदा ठेकेदार हैं, जो नेताओं के लिए भीड़ इकट्ठी करती है और उसके बदले में इन्हें पैसा मिलता है। हालांकि, कोरोना की वजह से इस बार बड़ी-बड़ी रैलियों और भीड़ इकट्ठा करने पर रोक जरूर है, उसके बावजूद इसे चलाने वाले सक्रिय हो गए हैं।

भास्कर ने जब किराए की भीड़ की पड़ताल के लिए ठेकेदारों का स्टिंग ऑपरेशन किया तो चौंकाने वाली बातें सामने आई। पता चला कि महज 300 रुपए में बाइकर्स मिल जाते हैं, जो नेताजी के लिए भीड़ बढ़ाने का काम करते हैं। ये भीड़ नेताओं की जयकार भी करती है और उनकी पार्टी का झंडा भी उठाती है। थोड़ी देर बाद यही भीड़ किसी दूसरी पार्टी के नेता के जयकार करने लगती है।

ऐसे हुआ किराए की भीड़ लाने वाले ठेकेदारों का खुलासा

सबसे पहले नेताओं के लिए किराए की भीड़ जमा कराने वाले ठेकेदारों की पहचान की, उनसे बात की और खुद राजनीतिक पार्टी के लिए इलेक्शन मैनेजमेंट का काम करने की बात कहकर भरोसा बनाया। भरोसा होते ही ठेकेदार ने एक-एक करके वो सारी बातें बता दीं, जो नेताओं के साथ होती थी।

बातचीत में पता चला कि ये किराए की भीड़ एक तरह से टैरिफ पर काम करती है। ठेकेदार पहले नेताओं से किलोमीटर के हिसाब से डील करते हैं। ये भीड़ नेताओं के साथ टैरिफ वाले समय तक जिंदाबाद करती है।

नीचें पढ़े भास्कर रिपोर्टर और ठेकेदार के बीच बातचीत...

रिपोर्टर - हैलो, नमस्ते भैया...मैं...बोल रहा हूं।

ठेकेदार - बोलो।

रिपोर्टर - बात हुई थी आपसे...बोरिंग रोड पर मुलाकात हुई थी।

ठेकेदार – हां...हां...बताओ।

रिपोर्टर - भैया मैं रहने वाला तो बाहर का हूं, यहां इवेंट मैनेजमेंट का काम कर रहा हूं।

ठेकेदार - हां बोलो क्या?

रिपोर्टर - कुछ पार्टियों की डिमांड आई थी रैली के लिए बाइक के साथ लड़कों की, आपकी मदद मिल जाएगी क्या?

ठेकेदार - ऐसा है न…तुम एक आध घंटे में हमको कॉल करोगे।

रिपोर्टर - भैया अभी....नेताजी को बताना था।

ठेकेदार - हां हो, ओह

रिपोर्टर - अच्छा ये बता दीजिए कितना लगेगा?

ठेकेदार - पर बाइक 300 रुपया देना होगा।

रिपोर्टर - तेल देना होगा अलग से?

ठेकेदार - नहीं…तेल के साथ, कहां से कहां जाना है अगर लॉन्ग डिस्टेंस हुआ तो पर बाइक 500...कम दूरी हुई तो 300 देना होगा।

रिपोर्टर - कितने किलो मीटर का 500 और कितने किलो मीटर का 300 देना होगा।

ठेकेदार - 10 किलोमीटर जाना है तो 300...अगर 15 से 20 किलोमीटर जाना हो तो 500 देना होगा।

रिपोर्टर - कितना मैक्सिमम हो सकता है, कितना लोग मिल सकते हैं?

ठेकेदार - 100 बाइक का हो जाएगा।

रिपोर्टर - कागज पत्र तो होगा उन सभी का, हालांकि कागज पत्र कौन चेक करेगा।

ठेकेदार - रैली में कागज पत्र कौन चेक करता है, पहले पूछ लो बात करके कंफर्म कर लो।

रिपोर्टर - भैया वो तो ज्यादा बता रहे थे, उन्हें ढाई से तीन सौ तक चाहिए था।

ठेकेदार - पहले पूछो तो सही पैसा देंगे या नहीं देंगे।

रिपोर्टर - पैसा तो देंगे, पैसा तो एडवांस देने की बात हुई है।

ठेकेदार - हां तो पैसा एडवांस दिला दो, फिर हम करेंगे आगे। नहीं दिए तो नहीं हो पाएगा।

रिपोर्टर - भैया ढाई तीन सौ की व्यवस्था हो जाएगी न।

ठेकेदार - ढाई तीन सौ नहीं कह सकते बाबू, हम डेढ़ सौ मिनिमम...झूठ नहीं बोलेंगे डेढ़ सौ तक का कर देंगे।

रिपोर्टर - इधर कोई ऑर्डर मिला है क्या?

ठेकेदार - नहीं अभी तो ऑर्डर कोई नहीं मिला है, पहले पूछ लेना रैली निकल रहा है, आचार संहिता लागू हो गई है।

रिपोर्टर - वो दूसरे तरह की रैली निकाल रहा है।

ठेकेदार - हां पहले पूछ लेना, फिर बताना।

रिपोर्टर - ठीक है भैया, व्यवस्था हो जाएगी न ।

ठेकेदार - हां हां हो जाएगी।

भीड़ को नारे लगाने होते हैं, एक गाइड भी होता है

किराए की भीड़ के कई काम होते हैं। सबसे पहला काम तो यही होता है कि इन्हें नेताजी की गाड़ी के पीछे अपनी बाइक दौड़ानी होती है। नेताजी के नारे लगाने होते हैं। नारे क्या लगेंगे, ये नेताजी और ठेकेदार तय करते हैं। भीड़ को गाइड करने वाला भी होता है, जो ये ध्यान रखता है कि बाइकर्स झंडे सही से उठा रहे हैं या नहीं।

ज्यादातर बाइकर्स वो होते हैं, जो बिगड़ैल और आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं

भीड़ बढ़ाने का काम करने वाले इन बाइकर्स में ज्यादातर वो लड़के होते हैं, जो बिगड़ैल और आपराधिक प्रवृत्ति वाले होते हैं। लूट, चोरी जैसी वारदातों में बाइकर्स का नाम आने के बाद करीब तीन साल पहले पटना के उस समय के एसएसपी मनु महाराज ने इन गैंग्स की पड़ताल की। पटना में ही करीब 50 से ज्यादा गैंग के 150 से ज्यादा लड़कों के नाम सामने आए थे, जो लूट, चोरी समेत कई वारदातों में शामिल थे। कार्रवाई हुई थी, लेकिन गैंग पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ।

समय बदला है, पहले भीड़ आती थी, अब बुलाई जाती है

एक्सपर्ट सुनील सिन्हा बताते हैं कि पहले नेताओं को सुनने के लिए भीड़ अपने साधन से या ट्रैक्टर-ट्रॉली से या बसों से पहुंच जाती थी। लेकिन, अब ट्रेंड बदल रहा है। अब भीड़ जुटाने के लिए नेताओं को मशक्कत करनी पड़ती है।

वहीं, बिहार की राजनीति में लंबे अरसे से नजर रखने वाले धनवंत सिंह राठौर कहते हैं कि पहले नेताओं के पास मुद्दे होते थे, लोग उनकी बात सुनने के लिए खुद आते थे। लेकिन, अब भीड़ में शामिल किसी व्यक्ति से पूछ लिया जाए कि वो किसकी रैली या जुलूस में आया है, तो शायद वो इसका जवाब भी न दे पाए।

डॉ. आशुतोष बताते हैं, बिहार में ऐसे कई बड़े नेता हुए हैं, जिन्हें सुनने के लिए गांधी मैदान भर जाता था, लेकिन अब ऐसा ट्रेंड आया है कि नेताओं को अपनी दमदारी दिखाने के लिए किराए की भीड़ लानी पड़ती है। वो कहते हैं पहले भीड़ आती थी, अब बुलानी पड़ती है।



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